पूनम अरोड़ा की कविताओं में प्रेम के अति सूक्ष्म से लेकर विराट तक के तन्तु अपने उद्दाम रूप में मिलते हैं।वह सम्पूर्ण नारी जीवन में प्रेम में मिली छलनाओं और चालाकियों को गुनती हैं,प्रेम में इस समस्त सृष्टि के सौन्दर्य को तलाशतीं हैं और उसे अपनी कविताओं में पिरोती हैं।कथ्य और शिल्प का सौन्दर्य भी यहाँ अनूठा है।आपकी काव्य भाषा गहरे अनुभूतियों के धरातल पर कविता का संसार रचती है।
मैं तुम्हारे प्रेम में
अपनी सब कोमल कवितायें
वो विनम्र पत्ते बना दूँगी जो अपने पतन को पूर्व से जानते हैं
उपरोक्त कविता की पंक्तियों में प्रेम में किए गये समर्पण की व्यथा,कथा को देखा और महसूसा जा सकता है। प्रेम सृष्टि की सबसे सुन्दर अनुभूति होते हुए जब स्त्री के पक्ष में आती है तो पाप-पुण्य की परिभाषाओं में जकड़ जाती है।पूनम इस खेल पर सूक्ष्म दृष्टि रखते हुए बिना किसी शोरोगुल के अपनी कविता में इस खेल से पर्दा उठाती हैं।
पूनम अरोड़ा की कविताओं में प्रेम के अति सूक्ष्म से लेकर विराट तक के तन्तु अपने उद्दाम रूप में मिलते हैं।वह सम्पूर्ण नारी जीवन में प्रेम में मिली छलनाओं और चालाकियों को गुनती हैं,प्रेम में इस समस्त सृष्टि के सौन्दर्य को तलाशतीं हैं और उसे अपनी कविताओं में पिरोती हैं।कथ्य और शिल्प का सौन्दर्य भी यहाँ अनूठा है।आपकी काव्य भाषा गहरे अनुभूतियों के धरातल पर कविता का संसार रचती है।
मैं तुम्हारे प्रेम में
अपनी सब कोमल कवितायें
वो विनम्र पत्ते बना दूँगी जो अपने पतन को पूर्व से जानते हैं
उपरोक्त कविता की पंक्तियों में प्रेम में किए गये समर्पण की व्यथा,कथा को देखा और महसूसा जा सकता है। प्रेम सृष्टि की सबसे सुन्दर अनुभूति होते हुए जब स्त्री के पक्ष में आती है तो पाप-पुण्य की परिभाषाओं में जकड़ जाती है।पूनम इस खेल पर सूक्ष्म दृष्टि रखते हुए बिना किसी शोरोगुल के अपनी कविता में इस खेल से पर्दा उठाती हैं।
1.
पूरा शहर भर गया है
यासमीन की अबोध ख़ुशबू से
लड़की के पाँव शुभेच्छा की ठिठुरती आंच को धीरे से
एक कोने में रख आते हैं
यही कोना संसार के बिखराव का हाथ भी है
जहाँ से सहमति ली जा सकती है
ख़ुद को समेटने की
लड़की अपनी किसी एक इच्छा को
उस कोने में रखे पानी पर उगा आती है
सबसे पहले मृतात्मायें आकर
अपनी उदास आँखों की परछाई
उस पानी पर छोड़ जाती हैं
फिर उल्लू उन पर देर तक निगरानी रखते हैं
प्रार्थनायें एक स्वर में
असंख्य भवरों की तरह गुनगुनाते हुए
इतनी विराट हो रही हैं कि उनका स्रोत खो रहा है
रिसती हुई प्रार्थनाओं में
कामना का एक शिशु जन्म लेगा अब शायद
दिन के गुज़र जाने के बाद
रात अपनी योजना के सफ़ेद शब्दों से
लड़की की पीठ पर लहरें बनाती है
वह सोते हुए यासमीन के फूलों का स्वप्न देखती है
करवट बदलती है
यह उसकी सांस की हरकत है
दृश्य कोई नहीं
चित्र - सोनी पाण्डेय
2.
वे संवाद नहीं माँगती
भिक्षा भी नहीं
न किसी जोड़-भाग में खुद को शामिल ही करती हैं
यह ठीक वही समय है
जब पीड़ाओं से उतर आता है श्वेत सीमाहीन एक द्वार मस्तक पर
यही वह समय भी है
जब रबिन्द्र संगीत एक लिफाफे में प्रेम-पत्र समान मुझे भेजा था तुमने
अपशकुनी कौएं विस्मय नहीं करते
न गहराती और आवेग की अग्नि में तपी कोयलें ही शोक करती हैं
देखो, सब कितना शीतल है
द्वेष नहीं न शाप
जल के विकार अपनी सतह पर जमे हैं
मिट्टी सर्द मौसम में ख़ामोशी से उदास प्रेमियों को ढके हुए है
तीतर उसी समय जंगल से घर को लौटते हैं
कोई पगडंडी ठीक इसी समय ठहर जाती है पुतलियों में
सूर्यबिम्ब ओझल हो जाने को आतुर
तितली मस्तक पर नृत्य-निद्रा करती है
सब आखेट है
कौन किसको कितनी हिंसा से प्रेम करता है
यह जानना हो तो एक मछली बनना होगा धैर्ये की
धरना होगा अपने केशों में एक निश्चय
यह प्रेमियों की बात नहीं केवल
बुखार और रोशनी की बात है
जिस पर चलते हुए लोग देख लेते हैं मूर्छा में प्रार्थनारत पूर्वज
वे सोईं हैं
आक्षेप और मर्यादा के मध्य
उन्होंने त्याग दिया है अपना भार
प्रश्नों के किनारे
हरे मौन में
3.
कवि ने कविताएँ लिखीं
उन पर चील-कौवे मंडराने लगे
उनकी चोंचें लाल थीं
उन्होंने कविता को निर्वस्त्र किया
उसकी कोमलता को चाटा
रेशा-रेशा छुआ
जिव्हा स्वाद कलिकाओं के कोमल आह्लाद में दंतपंक्तियो के मध्य कुटिल सांस भर रही थी
फिर खेल ख़त्म हुआ
कविता भी
और कवि भी
अब शोक बचा था
शोक
4.
तुम इतने बोधगम्य हो
जैसे समाधिस्थ बुद्ध के पास पड़ा एक कामनाहीन पत्ता
मैं तुम्हारे प्रेम में
अपनी सब कोमल कवितायें
वो विनम्र पत्ते बना दूँगी जो अपने पतन को पूर्व से जानते हैं
मैं ख़ुद को क्षमा कर दूँगी
चित्र - सोनी पाण्डेय
5.
एक नदी थी
जो नृत्य करना चाहती थी
वह हर रात मेरी माँ से निकलती थी
जब भी वह खिड़की से चाँद देखती थी
माँ कभी बूढ़ी नहीं हुई
क्यूँकि सूर्य का ताप
उसकी अलसायी उम्र को लगातार प्रेम करता रहा
वह जादू सिखाता रहा
और माँ सीखती रही
6-
भ्रम टूटते रहे और मैं बार-बार जन्मती रही
एक रात के अलाव से
जो लावा निकला था
उसने अबोध स्त्री के माथे पर शिशु उगा दिया
शिशु जब-जब रोया
अकेला रोया
अबोध स्त्री के हाथ अपरिपक्व थे और स्तन सूखे
किसी बहरूपिये ने एक रात एक लम्बी नींद स्त्री के हाथ पर रख एक गीत गाया
शिशु किलकारी मारने लगा
देवताओं ने चुपचाप सृष्टि में तारों वाली रात बना दी
गीत गूँजता रहा सदियों तक
अबोध स्त्रियाँ जनती रहीं कल्पनाओं के शिशु और बहरूपिये पिता सुनाते रहे
समुद्री लोरियाँँ
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परिचय
पूनम अरोड़ा ने इतिहास, मास कम्युनिकेशन और हिंदी में स्नातकोत्तर उपाधियाँ हासिल की हैं। दो कहानियों ‘आदि संगीत’ और ‘एक नूर से सब जग उपजे’ को हरियाणा साहित्य अकादमी का युवा लेखन पुरस्कार मिल चुका है। कहानी, कविता की रेडियो पर संगीतमय प्रस्तुती। कविताओं, कहानियों और आलेखों का देश की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशन। ‘कामनाहीन पत्ता’ नाम से कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुका है।
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