स्त्री की देह उसके विकास यात्रा की सबसे बड़ी बाधा है,हमारे समाज व्यवस्था में देह भर स्त्री अब तक स्वतंत्र इकाई नहीं बन पाई है।खुदमुख्तार हुई औरतों पर लांछनों की बौछार करता हमारा समाज उसे इस कदर प्रत्याड़ित करता है कि उसका हौसला टूटे न टूटे,दूसरी सुननेवाली औरतें अवश्य दहलजाती हैं और अपने पैर पीछे खींच लेती हैं।
यह भय का संसार खुद में समेटे औरतों ने धीरे-धीरे ही सही ,अपनी बात कविता में कहना शुरू कर दिया है,यह आवाज आधुनिक कविता में महादेवी वर्मा से आरम्भ हो आज की पीढ़ी में कहीं मध्यम तो कहीं तीव्र आक्रोश के साथ व्यक्त हो रही है।सीमा आजाद स्वतंत्र चेता एक्टिविस्ट लेखिका हैं। सामाजिक मुद्दों पर डट कर लड़नेवाली सीमा की कविताओं में तीव्र आक्रोश और राजनैतिक चेतना के स्वर मुखर हैं।
सीमा आजाद की कविताएँ
1
अगर तुम औरत हो
अगर तुम
कश्मीरी औरत हो
तो राष्ट्रभक्ति के लिए हो सकता है
तुम्हारा बलात्कार,
बलात्कारियों के समर्थन में
फहराये जा सकते हैं तिरंगे।
अगर तुम
मणिपुरी या सात बहनों के देश की बेटी हो
तो भी रौंदी जा सकती हो तुम,
राष्ट्रभक्ति के लिए
तुम्हारी योनि में
मारी जा सकती है गोली।
अगर तुम
आदिवासी औरत हो
तो तुम्हारी योनि में
भरे जा सकते हैं पत्थर
और कभी भी
काटा या निचोड़ा जा सकता है
तुम्हारा स्तन
राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए।
अगर तुम
मुस्लिम औरत हो
तब तो
कब्र में भी सुरक्षित नहीं हो तुम,
हिन्दू राष्ट्र के लिए
कभी भी निकाला जा सकता है तुम्हें
बलात्कार के लिए।
फाड़ी जा सकती है तुम्हारी कोख
मादा शरीर की खोज में।
अगर तुम
दलित औरत हो
तो सिर्फ पढ़-लिख कर
वर्णव्यवस्था में सेंध लगाने के लिए
लोहे की रॉड डाली जा सकती है
तुम्हारी योनि में
खैरलांजी की तरह।
तोड़ी जा सकती है गर्दन, हाथ पांव
हाथरस की तरह।
अगर तुम
सवर्ण औरत हो
तब भी सुरक्षित नहीं हो तुम।
गैंग रेप की बात ज़ुबान से निकालने भर से
मनुस्मृति की अवहेलना हो जाती है,
इसके लिए
हत्या की जा सकती है
तुम्हारी, या तुम्हारे पिता/भाई की।
अगर तुम
पुरूष सत्ता को
चुनौती देने वाली औरत हो
तब तो धमकियां बलात्कार की ही मिलेंगी
हो भी सकती हो बलत्कृत
किसी पुलिस थाने या हवेली में।
तुम कुछ भी हो
अगर औरत हो
तो हो निजाम के निशाने पर
इसलिए
अगर तुम औरत हो
तो बहुत ज़रूरी है
घरों से बाहर निकलना
सड़कों पर उतरना
और भिड़ना उस फासिस्ट निजाम से
जिनके लिए
हम औरतें
केवल शरीर हैं,
जिनका बलात्कार किया जा सकता है
अनेक वजहों से
कहीं भी, कभी भी
2
"आई कांट ब्रीथ"
मुझे घुटन हो रही है
सदियां बीत गईं
मेरे फेफड़े नहीं भर सके ताज़ी हवा से,
जॉर्ज फ्लोयड
केवल तुम नहीं
हम भी सांस नहीं लेे पा रहे हैं।
गांवों के बजबजाते दक्खिन टोले में,
महानगरों के विषैले सीवर होल में,
मनुवाद के घुटनों तले
घुट रहे हैं हम
सदियों से।
जॉर्ज फ्लोयड
हम भी सांस नहीं लेे पा रहे हैं।
घरों के सामंती बाड़े में,
रसोईघर के धुएं में,
धर्मग्रंथों के पन्नों तले
पितृसत्ता के क़दमों तले,
घुट रहे हैं हम
सदियों से।
जॉर्ज फ्लोयड
केवल तुम नहीं
हम भी सांस नहीं लेे पा रहे हैं।
हम भी सदियों से सांस नहीं लेे पा रहे हैं
अहिल्या और सीता के रामराज्य से -
उना के लोकतंत्रिक राज्य तक,
हममें से कुछ घुटन से मरे
तो कुछ का दम घोंट दिया गया
तुम्हारी तरह।
रोहित वेमुला, प्रियंका भोटमांगे, सुरेखा भोटमांगे
पायल तडवी, मनीषा
और कई अनाम नामों की
लंबी श्रृंखला है
जो इस घुटन से मारे गए।
जॉर्ज फ्लोयड,
तुम्हें यूं मरते देख
हमारी घुटन बढ़ रही है,
पूरी दुनिया में घुटन बढ़ गई है,
अचानक हम सबने एक साथ महसूस किया-
"वी कांट ब्रीथ"
हमें ताज़ी हवा चाहिए।
तुम्हारे देश में
लोग मुट्ठी तानें सड़कों पर उतर गए हैं
घुटन से निकलने के लिए,
ताज़ी हवा के लिए,
जॉर्ज फ्लोयड,
यह हवा आंधी बन सकती है।
इसे इधर भी आने दो।
-सीमा आज़ाद
1 जून 2020
3
वरवर राव के लिए
वो कविताओं में उतर कर
क्रांति के बीज बोता है,
वो कविता लिखता भर नहीं
उसे जीता भी है,
कविता के स्वप्न को
जमीन पर बोता भी है।
वो सिर्फ कवि नहीं
क्रांतिकारी कवि है।
कहते हैं
कवि कैद हो सकता है
कविता आज़ाद होती है,
कवि मर जाता है
कविता ज़िंदा रहती है
और समय के दिल में धड़कती रहती है।
लेकिन वह सिर्फ कवि नहीं है
कविता बन चुका है।
कविता बन समय के दिल में धड़क रहा है।
गौर से देखो
सत्ता के निशाने पर
सिर्फ कवि नहीं
कविता भी है।
जेल के भीतर ही
कविता की हत्या की सुपारी दी जा चुकी है
समय का दिल खतरे में है।
ऐसे समय से निकलने की राह
उसने ही बताई है -
'कविता सिर्फ लिखो मत
उसे जिअो भी,
कविता के स्वप्न को
जमीन पर बोओ भी,
कविता में उतर
क्रांति के बीज को बोओ भी।'
4
महायात्रा
जंगल से
महानगर तक की यात्रा में
रचते और गढ़ते आगे बढ़े थे हम,
बिना यह सोचे
कि किसका होगा यह।
हम तो यही सोचते रहे कि
इस यात्रा में रचते - गढ़ते
जब - जब लौटेंगे अपने घरों की ओर
तो भूख भर खाएंगे,
नींद भर सोएंगे।
सोचते - गढ़ते - रचते
काफी आगे अा गए हम,
लोगों ने बताया
21 वीं सदी है यह।
विकास यात्रा की वह सदी,
जहां
न भूख भर भोजन है
न आंख भर नींद
हमारे लिए।
आदिम से 21वीं सदी तक
गढ़ा था हमने जो स्वर्ग,
उस स्वर्ग से विदाई थी अब।
हां, गोरख ने इस विदाई की बात बताई थी,
लेकिन ये विदाई होगी इस तरह,
ये नहीं बताया था।
अपनी और अपनों की लाशें उठाए
लहूलुहान पांव
बिखरे ख्वाब के साथ
लौट रहे हैं हम।
यह लौटना हमारा
नहीं है पीछे लौटना,
उस स्वर्ग से विदाई भर है,
जिसमें अपने हिस्से का
भ्रम था हमें।
इस भ्रम का टूटना
हमारी अनंत यात्रा का हिस्सा भर है।
हम लौट रहे हैं गांवों की ओर
और बढ़ रहे हैं आगे की ओर।
हमारा बच्चा स्टेशन पर है,
वह मरी मां के चादर को नहीं
21वीं सदी के पर्दे को उघाड़ कर देख रहा है।
यात्रा का ख्वाब
अब भी सुरक्षित है उसकी आंखों में
वह आगे बढ़ेगा,
समय उसके ही साथ चलेगा,
वह फिर से स्वर्ग गढ़ेगा,
सबमें ख्वाब रचेगा,
इस बार स्वर्ग पर कब्ज़ा भी गहेगा।
5
जेल*
ब्रह्माण्ड की तरह फैलते
मेरे वजूद को
तुमने समेट दिया
तीन फीट चौड़ी आठ फीट लंबी
कब्र जैसी सीमेंटेड सीट में।
मैंने इसके एक कोने में
सजा लिया
अमलतास के लहलहाते फूलों का गुच्छा
बेला के फूलों की खुशबू से तर कर डाला
सलाखों को।
दीवार पर सजा दिया
नदी, पहाड़, जंगल, पशु पक्षी
और तारीखों जड़ा रंगीन कैलेंडर
होसे मारिया सिसों की की कविता का पोस्टर
चिपका दिया है ठीक आंख के सामने।
इन सबके ऊपर सजी है
भगत सिंह और चे ग्वेरा की तस्वीरें
प्रेरणा और हौसले के लिए।
इस तरह मैंने
तुम्हारी दी हुई
तीन फीट चौड़ी और आठ फीट लंबी सीमेंटेड कब्र को
एक भरी पूरी दुनिया में बदल डाला।
(यह कविता मैंने 2010 से 2012 के ढाई साल के जेल बंदी के समय लिखी थी।)
परिचय
सीमा आज़ाद
राजनैतिक सामाजिक पत्रिका दस्तक की "संपादक"
स्वतंत्र पत्रकार
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल से जुड़ाव
कहानियां और कविताएं हंस, पाखी, ज्ञानोदय, वागर्थ, लमही, बया, कथन, पल - प्रतिपल, अहा ज़िन्दगी, नवनीत, शुक्रवार, रेवांत, गांव के लोग आदि में प्रकाशित।
कविता के लिए 2012 का "लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई" पुरस्कार।
प्रकाशित पुस्तकें - जिंदांनामा, चांद तारों के बगैर एक दुनिया ( जेल डायरी)
सरोगेट कंट्री (कहानी संग्रह)
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