युवा कवि गरिमा सिंह का गाथांतर पर स्वागत है। इधर वह अपनी कविताओं से निरंतर ध्यान खींच रही हैं।आइए पढ़ते हैं उनकी कुछ कविताएँ -
(1)
वो लड़की
वो लड़की देख रही है
अपनी छत से सूरज को ढ़लते हुए
धीरे, धीरे बादलों की परतों को चीरकर
सूरज समा रहा है सतरंगी आसमां में
नीले रंग में वो उड़ा देना चाहती है
अपना दुपट्टा
सुना है उसने कि
नीला रंग गहरे प्रेम का प्रतीक है
जिससे वह आज लिख देना चाहती है
एक गीत आसमान के सीने पर,
और अपने हाथों को हवा में उठाकर
बना देना चाहती है फ़ाख्ता का एक जोड़ा,
और उन्हें उड़ा देना चाहती है
उड़ रहे पंछियों के झुण्ड में
सहसा व देखती है
आपस में कलरव करते
एक पंछियो का जोड़ा
उसकी ओर उड़ता चला आ रहा है,
झुरमुट से साँझ झाँक आती है दूर तक
सब कुछ वह आज
बना देना चाहती है
मुक़म्मल,
इस शाम की तरह,
और उतार लेना चाहती है
अपनी जिन्दगी में भी
एक मुक़म्मल शाम
जो हकीकत में कहाँ आती है
उसकी जिन्दगी में
जिसका करती है वह रोज़
यूँ ही इंतज़ार।
(2)
स्त्री
तुम एक कल्पना नहीं हो
न ही मात्र देह
स्पंदित है तुम्हारा मन
स्याही-कलम से नहीं
आंसुओ से लिखा गया
इतिहास तुम्हारा,
कई गार्गी, द्रोपदी में ढ़ली तुम
न जाने कितनी बार ख़डी हुई
सीता की तरह आज भी
अग्नि परीक्षा जारी है।
नहीं है तुम्हारे कई चेहरे
किसी को छलना नहीं सीखा
आँवा की नमिता की तरह
जलती हो तुम,
पिकासो के चित्रों में उभरी हो
सूजन मैग्नो की कविता की तरह
आज भी जंग तुम्हारी जारी है।
रोटियों की परिधि से बाहर निकलकर
धरती की गहराई को मापना होगा
चरित्रों के खाके से झाँकना होगा बाहर
इमारत की पहली ईंट हो तुम
बदलनी होगी करवट एक बार फिर
पुरुषों ने लिख डाला आधा इतिहास
अब तुम्हारी बारी है।
तोड़नी होंगी कुछ वर्जनाएं
लगानी होगी छलांग इस घेरे से
भले नाखूनों को न बनाओ सख्त
कवच को बनाना होगा कठोर
तोड़नी होगी श्रृँखला और बेड़ियाँ
लेखनी में पैदा करनी होगी धार
उठो, नया इतिहास लिखने की तैयारी है।
(3)
गुड़िया
वह छोटी बच्ची जो खेलती है
छोटे छोटे घरौदे बनाकर
अपने नन्हें हाथों को चूड़ियों से सजाती है,
वह रोज सपने संजोती है बड़े होने के,
जिससे वह भी मम्मी की तरह डाँट सके,
कई स्वांग रचती है
कभी दुपट्टे को साडी की तरह लपेट कर
माथे पर बिंदी लगाकर,
पैरों में पहन लेती है पायल
अपनी नन्ही सी गुड़िया को सीने से लगाए
एक माँ के कर्मों को सहज ही निभाती है,
उसके लिए यह एक खेल है
वह गुड़िया को थपकियाँ देकर सुलाती है,
उसे नहलाती है, बड़े प्यार से खिलाती है,
उसे डाँटती है,
प्यार से समझाती है,
गुड़िया को लड़की होने के सारे कर्म बतलाती है,
जो अपने लिए माँ से सुनती है,
वो सब गुड़िया को सुनाती है,
डाँट पड़ने पर ,उस पर गुस्सा उतारती है,
माँ के न रहने पर सब दुख दर्द उससे बाँटती है,
उसे गुड़िया बनाया जाता है,
वो बेचारी गुड़िया को लड़की बनाती है,
लड़की होने के सारे गुण धर्म को निभाती है,
बड़े होने पर भी गुड़िया को कहा भूल पाती है?
अपनी सारी चंचलता को गुड़िया के भीतर
उसी देहरी पर छोड़ आती है।
(4)
कविता का जन्म
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एक कविता यूँ ही
नहीं जन्मती
बिना भाव,
बिना पीड़ा,
एक कविता
मन की कोख से
, एक बच्चे की
तरह रोज सृजित होती है
, धीरे -धीरे बनता है
कविता का मन शरीर, मस्तिष्क,
और दर्द से पैदा होती है
कविता, जिसे देखकर
कवि ऐसे ही खुश होता है
जैसे एक माँ,
और हर कविता दुनिया
की सबसे सुन्दर कविता
बन जाती है,
या समझी जाती है,
वह रोज उसे निहारता है,
उसकी किलकारियाँ सुनकर
आनंदित होता है,
उसे बार बार सवारता है,
सुधारता है,
कुछ दिन बाद वही कविता
बड़ी हो जाती है,
वो देखता है, उसके भावों से
अब मेल नहीं खाती,
एक संघर्ष छिड़ जाता है
जिसे पीढ़ी संघर्ष कहते है,
कवि का मन फिर तड़पता है,
नए भाव फिर कुलबुलाते है,
सृजन की आंकाक्षा से
फिर पैदा हो जाती है
कविता, जीवन की अनवरत
प्रक्रिया में शामिल होने के लिए।
गरिमा सिंह
परिचय
हिंदीसहित्य विषय से नेट जे आर एफ गरिमा सिंह जौनपुर (उत्तर प्रदेश )जिले की मूल निवासिनी है,जो वर्तमान समय मे राज्य कर अधिकारी के पद पर कार्यरत रहते हुए अपने लिए कुछ समय निकाल कर साहित्य सृजन का कार्य करती है, इनकी कविताए पत्र पत्रिकाओं मे प्रकाशित है। ,
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंशानदार लेखन
जवाब देंहटाएंस्त्री विमर्श कि बेहतरीन रचनाएँ...!
जवाब देंहटाएंशानदार कविताएं हैं। बधाई
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