शनिवार, 14 जनवरी 2017

सोनी पाण्डेय की कहानी

                                                     बदचलन कौन




नीम के चौतरे पर बैठी मिडवाईफ चम्पा मौसी बारी -बारी से बच्चोंं के हाथ पर चेचक के प्रतिरोधक टीके लगाये जा रही थींं। औरतेंं समवेत स्वर मेँ देवी गीत गा रही थींं- 

"  निमिया की डरिया मईsया डाले ली झुलनsवा हो कि झूली-झूली नाss"

 मतहारी नीम की पत्तियोंं से टीके लगने के उपरान्त झाड़ती और पाँच रुपये का चढावा लेकर कटोरे मेंं डाल कर कुछ बुदबुदाती। वातावरण भक्तिमय हो उठा था। औरतेंं  कतार मेंं अपने नन्हेंं -मुन्नोंं को ले कर खड़ी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थींं। दिवाकर पाण्डे अपने दुवार पर बैठे इस दृश्य को देख कर कुढ़ रहे थे। क्रोध से काँपते हुए बोले - "इस छिनाल के हाथोंं से देवी न दवा लेगी न दुवा ,देखना !कह देता हूँ नन्हेंं यादव, सब मारे जाएँगे देवी के कोप से। "

नन्हेंं यादव अपनी लाठी का टेक ले चिंंतित होते हुए बोले - "का करींं ऐ बाबा , आप कह तो सहीये रहे हैंं , कौनोंं चारा भी तो नहींं, इहाँ तीन-चार कोस मेंं कोई दूसरी मिडवाईफ नहींं है, जाऐंं तो कहाँ जाऐंं। शहर से बडका बेटा चिट्ठी पठाये है, बडी बेदर्दी से लिखा है कि जो लडकोंं को टीका न लगवाया तो शहर उठ ले जाऐंंगे। आपे कहे, इस बुढवती मेंं नात -नतगुर बिन कैसे रहेंंगे? घर काटने लगेगा, मलकिनिया नहींं रही। सब उजर जाऐगा।"

 नन्हेँ यादव कोंंछी से सूरती निकाल कर ठोंंकने लगे। दिवाकर पांडे ने चुटकी भर खैनी होठोंं के नीचे दबाते हुए कहा-

 " हूँहsss नन्हेंं! इस छिनार ने गाँव भर की औरतोंं को बिगाड़ने का बीड़ां उठाया है, हमारी तीसरी आँख देख रही है। अब तो अहिराने मेंं भी लाली-इसनोंं खूब बिका रहा है, मियाईन की दौरी खलिया जाती है।सब साले डूबेगें, फिर न कहना, चेताया न था। "

दिवाकर पांडे चम्पा मौसी के वज्र दुश्मन थे, लेकिन चम्पा मौसी भी कम न थी। वो डाल - डाल, ये पात - पात। चम्पा की दवाईयोंं के आगे उनकी ओझयिती की दुकान बिलबिलाने लगी थी। अतः इस ताक मेँ रहते कि कैसे इसे गाँव से खदेड़ भगाऊँ। लेकिन ये काम इतना आसान नहींं था। दिन बीतते रहेंं, दिवाकर पांडे कहानियाँ गढ - गढ के लोगोंं को सुनाते रहे । जबकि सच यह था कि चम्पा मौसी को पति ने छोड़ के दूसरा ब्याह कर लिया और मार -पीट कर घर से निकाल दिया ,दोनों बेटियोंं को ले वह जान बचाकर मायके पहुँची। भाईयोंं ने ठेक न लेने दिया। बेटियोंं वाली जवान औरत कहाँ जाएँ ? आठवींं पास चम्पा को सहेली का आसरा मिला। सहेली का पति स्वास्थ्य विभाग मेंं था। तीन -पाँच करके किसी तरह मिडवाईफ की नौकरी मिली। जिन्दगी की गाड़ी चल निकली, पैसा हो तो जीवन सम्भव है, चम्पा को समझ आने लगा। चम्पा की पहली समस्या दूर हुई तो दूसरी पहाड़ की तरह आ कर खडी हो गयी। सुन्दर अकेली औरत के लिए स्वास्थ विभाग की नौकरी किसी नर्क से कम न थीँ , कभी किसी डॉक्टर के साथ नाम जुड़ता कभी कम्पांउडर से । बेटियोंं का मुँह देख दुनिया के ताने सहते, रोते - धोते चम्पा मौसी जीवन समर मेँ आगे बढ रही थींं। चारोंं गाँव की औरतोंं की दीदी चम्पा देखते - देखते सबके बच्चोंं की मौसी बन गयींं। इस तरह वह जगत मौसी और सबकी साली बनती गयीं।सबसे हँसने - बोलने, रिगाने - चिढाने के कारण चम्पा मौसी चट्टी - चौपाल तक चर्चित रहने वाली छिछोरी औरत कही जातींं। 

                                                इसी बीच एक घटना घटी। किसी ने चम्पा मौसी के घर मेँ घुस कर चोरी की। बच्चियोंं और उनसे मार -पीट भी की। बेचारी की मेहनत की सारी कमाई लूट गयी। अकेली औरत, इसमेंं भी लोगोंं को खोट नजर आने लगा । दस यार पाल रखा है ससुरी ने। कौनोंं ने बजा दिया, आदि- आदि कहते फिरते दिवाकर पांडे। दिवाकर पांडे हाथ धो कर चम्पा मौसी के पीछे पड़ गये। दाव भुनाने मेंं कोई कोर कसर नहींं छोडना चाहते थे । अफवाह उड़ा दिया, नौकरी दिलाने वाला राय फसाऐ बैठा है। काना - फूसी का दौर शुरु हुआ । खबर चम्पा मौसी की सहेली तक पहुँची। कोहराम मच गया, दोनोंं सहेलियोंं मेंं झोंंटा - झोंंटी सब हुआ, राय बेचारे बिना कुछ किए बदनाम हो गये। दिवाकर पांडे विजयी। किन्तु जो आगे हुआ वह अप्रत्याशित था। किसी ने सपने मेंं भी कल्पना नहीँ की होगी। एक शाम अचानक राय चम्पा मौसी के घर आये और जो आये तो यहींं के हो कर रह गये। दिवाकर पांडे ने पंचायत बुलाया। गाँव क्षेत्र से दोनोंं की बेदखली की घोषणा हुई। चम्पा मौसी तमतमाती हुई महापंचायत के बीच बैठे दिवाकर पांडे के पास पहुँची। कालर पकड़ कर जोर का तमाचा गाल पार जड़ते हुऐ पूरे पंचायत को ललकारते हुए कहा - "अरे पंचो ! हूँ मैँ छिनाल। रक्खे हूँ राय को। राय मर्द है मर्द। इस पांडे की तरह मेहरिया नहीँ। जो किया डंके की चोट पर किया। नाम जुडते हाथ थाम लिया । "

पंच प्रमुख के निकट पहुँच कर चुटकी बजाते हुऐ कहा - "हे मुन्शी जी सूप हँसे तो हँसे चालन कैसे हँस जी। कहो तो बताऊँ तुम्हारे कुल की कथा सबको ,कब किसने ,कितने पेट कछाऐ - पोछाय। "

मुन्शी जी मुँह छिपाऐ चलते बने। बाकी चार पंचोंं की ओर पलटते ही चम्पा मौसी रौद्र रुप धारण कर चुकी थी। गाँव बहरियाओगे विजयी सिंंह। तनी ये तो बताते जाओ गाँव सभा को कि तू क्या करने रोज खड़हरे जाता है?

 तब तक पूरी पंचायत मौन तमाशा देख रही थी। बचे तीन पंच नजर चुरा कर भाग निकले । सभी स्तब्ध थे। मुन्ना यादव लाठी का टेक ले खड़े हुए ,मुस्कुराते हुए कहा - "चलो भाई लोग, देख लिया न सबने कि आखिर बदचलन कौन ,कहाँ ,कैसे है, और छिनाल कौन है?यहाँ साले सब बदचलन और सब छिनाल हैंं।

 सम्पर्क- 

सोनी पाण्डेय

 कृष्णा नगर, सिधारी 

आजमगढ।

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