रविवार, 28 दिसंबर 2025

भोजपुरी कविता

   
लोकभाषा के आपन रस- गंध होला, लाल बहादुर चौरसिया 'लाल' के भोजपुरी कविता जीवन के एतना निकट के कविता है कि पाठक अपना के उनके साथ जोड़ि लेला।गाँव गिरावं में प्रबल अंध विश्वास होखे ,चाहे पेड़ ,पौधा, चिरई,चुढूंग होंखे,सब अपना रूप रंग संग इहां बसल बा।आज गाथांतर आप की कविता संगे पाठकन के समक्ष उपस्थित बा,पढ़ीं सभे-





1- "चुभे लागल बरगद के छांव"

पसरल बबूल गांव- गांव। 
चुभे लागल बरगद के छांव।।

भोर कै किरिनिया हेराय गईल कहियै ,
कुश्ती अ दंगल भुलाय गयल रहियै ,
             मिटि गइलै होरहा कै नाँव।
             चुभे लागल बरगद के छाँव।।

बुरुस अऊर मंजन कै आयल जमाना,
दतुइन कै सिस्टम त भइलें पुराना,
             लाज लागे छुवला में पाँव।
             चुभे लागल बरगद के छाँव।।

चइता अ कजरी ना होली गवाले,
डीजे प डांस बदे लइका कोहाले,
              हियरा में लागे "लाल" घाव।
              चुभे लागल बरगद के छाँव ।।


 2- "अबहिन रेंगति उहै चालि हौ"

उहै ओझती उहै सोखइती,अबहिन रेंगति उहै चालि हौ।
तोहरे खातिन भले नई बा,हमारे खातिन उहै सालि हौ।।
उहै बा जोड़ा उहै बा जामा, उहै चमड़िया उहै खालि हौ,
तोहरे खातिन भले नई बा, हमारे खातिन उहै सालि हौ।।

उहै चनरमा, उहैबा सूरज, ऊहै रैन, अंजोरिया बा,
ऊहै बल्टी, उहैबा लोटा, उहै भदेली - थरिया बा,
उहै सँधतिया उहै सँसतिया, रोज-रोज कै उहै हालि हौ।
तोहरे खातिन भले नई बा,हमारे खातिन उहै सालि हौ।।

उहैबा ओढ़ना उहै बिछौना, उहै टुटहिया खटिया बा,
उहैबा कोलिया उहै खड़ंजा, उहै मड़इया -टटिया बा,
उहै खोखाइन उहै पनउती, उहै गड़हिया उहै झालि हौ।
तोहरे खातिन भले नई बा,हमारे खातिन उहै सालि हौ।।

उहैबा खूँटा, उहैबा हउदी, उहै भँइसिया-पँड़िया बा,
अरगन, ताखा उहै , 'लाल' बा, उहवै मूँसर-कँड़िया बा,
उहैबा आँटा, उहैबा चाउर, उहै बा बोरन उहै दालि हौ।
तोहरे खातिन भले नई बा,हमारे खातिन उहै सालि हौ।।

             
3- "ई बात तोहै समझावल जायी"

तूंँ डाल डाल हम पात पात,
ई बात तोहै समझावल जायी।
      तूंँ जीति के गईला का कईला,
      ई मुद्दा आज उठावल जायी।।

तूंँ ज्ञानी खुद के माने ला,
हमरा के अनपढ़ जाने ला,
जब इहै बात हम पूछ दीहल,
तूंँ टेढ़ भौहिंया ताने ला,

ऊ समय रहल जो बीत गयल,
अब वइसै नांँय बितावल जायी।
      तूंँ जीति के गईला का कईला,
      ई मुद्दा आज उठावल जायी।।

तूंँ लीक छोड़ि के बढ़ि जाला,
पाल्हा से आगे चढ़ी जाला,
ई सगरो मूड़ फोरउव्वल कै,
खिस्सा नयका तूं गढ़ि जाला,

तूंँ बुझनी बहुत बुझा भइला,
अब बुझनी यहर बुझावल जायी।
     तूं जीति के गईला का कईला,
     ई मुद्दा आज उठावल जायी।।

तूंँ थइली धयि सरकार चला,
लइके सगरो उजियार चला,
हम टूटहा चप्पल पे दउरीं,
तूं साजि के मोटरकार चला,

ई ऊंँच-नीच कै भींटा बाबू,
हलियै काट गिरावल जायी।
      तूंँ जीति के गईला का कईला,
      ई मुद्दा आज उठावल जायी।।

तूंँ उछल कूदि के तरि जाला,
छातिया पे मुगंवा दरि जाला,
रात गुलाबी कयि आपन,
तूँ खिलल चांदनी हरि जाला,

अबकी दाल गलै ना पायी,
अइसन आँच देखावल जायी।
      तूंँ जीति के गईला का कईला,
      ई मुद्दा आज उठावल जायी।।

तूंँ खायि के मेवा गावेला,
बस हमके ज्ञान सुनावे ला,
हम चकती जोरत रहि गइलीं,
तूंँ सूट रोज लहरावे ला,

ई कहांँ से एतना धन पवला,
अब एकर थाह लगावल जायी।
      तूंँ जीति के गईला का कईला,
      ई मुद्दा आज उठावल जायी।।

तूंँ वादा "लाल" भुला गईला,
तूंँ आपन रूप देखा गईला,
हम देखि के सपना पेट भरीं,
तूंँ नोट पे नाच,नचा गईला,

तूंँ खोलि के पखना उड़ि भइला,
अब पखना काटि उड़ावल जायी,
      तूंँ जीति के गईला का कईला,
      ई मुद्दा आज उठावल जायी।।

4- "चूर कवन बइठावत हउवा"

चूर कवन बइठावत हउवा।
जै-जै ओकर गावत हउवा।।

कइसन तोंहके जानत रहलीं,
कइसन रुप देखावत हउवा।

जउने पेड़ के छांहें रहला,
पेड़ उहै छिनगावत हउवा।

भूख पे लेक्चर झारै खातिर,
काजू चाभि के आवत हउवा।

तूंँ ओकर गोड़धरिया कइला,
वही के तूंँ गरियावत हउवा।

हाथ में भांटा लेइके बाबू,
मुरई यस निकियावत हउवा।

अपने साथे साथे मरदे,
मोके लात खियावत हउवा।

काव मिलीअब ई कुल कइले,
अबहिनआंख लड़ावत हउवा।

'लाल' बुझाला मतलब गंठबा,
जाल बहुत फइलावत हउवा।।



5- "याद आवेले बचपन के बाली उमर"

याद आवेले बचपन के बाली उमर।
काहें टूटल खिलौना ऊ माटी के घर।।

धूर हीरा रहल, राख मोती रहल,
राह में हर परग सुख के ज्योति रहल, 
भूली बनवाँ कै कइसे सुहानी डगर।
याद आवेले बचपन के बाली उमर।।

बाबू माई के गोदिया कै सुखवा चयन,
आजु चाची के नेंहिया के तरसे नयन,
जाने कहवाँ हेराइल ऊ सगरी लहर।
याद आवेले बचपन के बाली उमर।।

एक राजा रहल, एक रानी रहल,
बूढ़ी नानी कै इहवै कहानी रहल,
ना हियरा से निकसल भकउवाँ के डर।
याद आवेले बचपन के बाली उमर।।

लागल सुखवा कै बाबू रिमझिम झड़ी,
"लाल" कइसे के टूटल ऊ पावन लड़ी,
उम्र बाढल जवानी कै पी के जहर।
याद आवेले बचपन के बाली उमर।।

जाने पल भर में कइसे घेरा गइलीं हम,
नाँद अनहद कै सुनि के डेरा गइलीं हम,
कउना खबरी लिआयल अइसन खबर।
याद आवेले बचपन के बाली उमर।।


रचनाकार




नाम - लालबहादुर चौरसिया 'लाल'
शैक्षिक योग्यता - स्नातक
जन्म तिथि - 5 अक्टूबर सन् 1976
जन्म स्थान व पता - ग्राम टहर किशुनदेवपुर, पोस्ट- टहर वाजिदपुर, गोपालगंज बाजार, जिला आजमगढ़, उत्तर प्रदेश, पिनकोड- 276141,
 मो.9452088890

लेखन - कविता, हिन्दी गजल, गीत, कहानी, भोजपुरी काव्य व भोजपुरी गीत, 

प्रकाशित पुस्तकें - "आँसू से मुस्कान लिखेंगे" (काव्य संग्रह) प्रथम संस्करण सन् 2021, द्वितीय संस्करण सन् 2023, "मैं मधुमास ढूंँढ़ने आया" काव्य संग्रह (प्रकाशित वर्ष 2024)

आईसीएसई व सीबीएसई बोर्ड की हिंदी पाठ्य-पुस्तक मैथिली सीरीज में पांच बाल कविताएं शामिल-
प्रवेशिका में - कविता "रंग बिरंगी तितली"
कक्षा 1 में - कविता "चिड़िया" व "सपने में परी"
कक्षा 4 में - कविता "सब्जी सम्मेलन"
कक्षा 7 में - कविता "मैं बेटी हूँ" 
पाठ्य पुस्तक बांसुरी सीरीज में दो कविता व एक जीवनी शामिल -
प्रवेशिका में - चंपक सियार 
कक्षा 6 - नौशेरा का शेर- ब्रिगेडियर उस्मान (जीवनी)
कक्षा 8 - सद्भावों के पुष्प 

लोकप्रिय रचनाएँ: 
1. "केहू नइखे बोलत बा" (भोजपुरी गीत)
2. "मौनी जी की पावन कथा" भाग 1, भाग 2 (यूट्यूब पर) 



    


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविताएं.

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  2. गाथांतर हिंदी त्रैमासिक पत्रिका व ब्लॉग पटल पर मेरी पांच भोजपुरी कविताओं को प्रकाशित करने के लिए गाथांतर साहित्यिक संस्था की संस्थापिका आदरणीया डॉ सोनी पांडेय जी तथा डॉ प्रतिभा सिंह जी का बहुत-बहुत आभार।
    -लालबहादुर चौरसिया लाल, आजमगढ़,9452088890

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  3. लालबहादुर चौरसिया लाल28 दिसंबर 2025 को 9:01 am बजे

    मेरी पांच भोजपुरी कविता को गाथांतर साहित्यिक पटल पर सम्मान देने के लिए आदरणीया डॉ सोनी पांडेय जी का बहुत बहुत आभार। गाथांतर तक कविता पहुंचाने में सहायक भूमिका निभाने के लिए डॉ प्रतिभा सिंह जी का बहुत-बहुत आभार

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