स्वभाव से सहज और सरल विमल निरन्तर रचनाशील हैं।जिद है कि कुछ करना है और लगातार लिखते -पढ़ते अग्रसर हैं साहित्य की पगडण्डियों पर ।रास्ते मुश्किल हैं किन्तु कछुए कभी विफल नहीं होते के सिद्धान्त पर बढ़ते विमल कविता का कहरा सिखते हुए अथक श्रमशील कवि हैं।आईए आज गाथांतर पर विमल का स्वागत करें......
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!! रात और दिन का असद !!
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सुनो रात/तुम बढ़ने लगी हो
बोझिल और ज्यादा महसूस होने लगी हो
दिन तो जल्दी ढल जाता है
प्रिय.....बेरूखी से तुम्हारी /दिल दुख जाता है
छोटा दिन इंतजार में तुम्हारे
नैनों से अनवरत अश्रु बहाता है
प्रिय.....संग स्वप्न मिलन के लाता है
एक तुम हो कि निरा स्याह और घुप्प
घटाटोप अंधकार सी छाकर
मेरी वेदना में त्वरित घुलती जाती हो
रात तुम बढ़ती जाती हो/प्रेम के बढ़ते अन्तराल के साथ
तुम और बढ़ती जाती हो
जो रह गया अनकहा/अकथनीय सा
वो अन्तराल पाट जाती हो
अधूरे #हमतुम के बीच/जो काबिज है समर्पण
सहज एहसासात करा जाती हो
जन्म जन्मांतर तक सुरक्षित प्रेम
परस्पर हम-तुम के दरम्यान👫
सुनो रात
सुनो हम तुम की अन्तरात्मा की बात।।
2----
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!! बहुधा कम ही देखा जाता है !!
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बहुधा कम ही देखा जाता है
पिता के होते हुये भी
सालों पिता के स्नेह से
किसी बेटी का वंचित होना
पिता के लिये आसान नहीं होता
बेटी की परिवरिश के लिये
बेटी से मोह भंग करना
शिक्षा-दीक्षा लालन-पालन के लिये
लाडली को नज़रों से दूर करना
बहुधा कम ही देखा जाता है।।
पिता लिखते हैं हर साल
वे मिलते नहीं एक बार को भी
बस उकेरते हैं बिना मिले
झौव्वा भर अतुलनीय स्नेह,
देते हैं शुभाशीष और नसीहतें
वे मानकर खुद को अपराधी
करते हैं पश्चाताप आज भी/कागजी पाती पर
बहुधा कम ही देखा जाता है।।
पिता बातों ही बातों में बता देते हैं सहूलियत
सिखा देते हैं परदेश में रहकर
जिन्दगी को जी लेने का हुनर
वे दिखा देते हैं आसानी से आईने में
समाज के विकृत चेहरों की पहचान करना
समाज के कुंठितों से बचाव करना/कागज़ी पाती पर
सच पिता साथ न होकर भी/होते हैं साथ
बहुधा कम ही देखा जाता है।
3-
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शीर्षक-सुन रहे हो ना।ओ कैक्टस
सुन रहे हो ना! ओ कैक्टस।
कौन कहता- कि तुम चुभते हो,
बस बात अपनी, तीक्ष्णता से कहते हो
तुम तल्ख,बेहद नुकीले...शूल सम दिखते हो
सब कहते हैं कि अनायास चुभते हो
तुम कैसे उन्मुक्त हंसी हँसते हो
बढ़ाकर तुम भी देखो,अपना स्टेटस।
सुन रहे हो ना।ओ कैक्टस।🌵🌵
तपते जलते परिवेश में देखा है
जब सूखने लगते हैं हर वृक्ष,डाल, पात।
प्रकृति की सम/विषम जलवायु में,
काँटो के बीच हरियाना देखा है।
और कंटीली तुम्हारी सतहों का
विषमता के बीच मुस्कुराना देखा है।
कोमल कांटों का इतराना देखा है
सुन रहे हो ना।ओ कैक्टस।।🌵🌵
तुम खाद पानी से जितना वंचित/
उतना ही होते पूर्ण विकसित
तुम और फलते फूलते दिखते हो।
काँटो की फकत के बीच, कैसे हँसते हो।।
तुम इसी गुणीभूत विशेषता से
अधिकतर घरों की बैठकों का/साजो-श्रृंगार बनते हो
मेरे हृदय में निःसंदेह बसते हो,उतना
प्रसार पाती है हरीतिमा, अन्तस तक/ जितना
छोडतीं हैं बातें तुम्हारी, गजब का इम्पैक्टस।
सुन रहे हो ना।ओ कैक्टस।।🌵🌵
4-
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!! मन की बात जता लेते हो !!
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साध अनोखे कहन की शैली
सच कैसे झुठला सकते हो...
तरह तरह से भावुक होकर
मन की बात जता लेते हो...
तनिक रूकते हो
चिंतन करते हो
गजब संवाद अदा करते हो
मन की बात बता लेते हो....
देखा जा सकता है तुम्हारा
रूकना,आसमान तकना
रूंधे गले से ध्वनि परिवर्तन करना
अजब हालकुशल सुना लेते हो
गरीब की गरीबी अमीर की अमीरी
दोनों से तुम भी हो वाकिफ
फिर कैसे अन्तर दिखला लेते हो
मन की बात बता लेते हो...
तुम्हारे मन की बात से
मुझे भरम सा होता है
पैसे वाला तो मदमस्त यहां
बस गरीब ही रोता है.....
सच ही तो लगता है मुझको
ओ भाषायी जादूगर
है अखिल देश में वर्चस्व तुम्हारा
मन की बात जताने से.....
5-
दूर होकर भी
हर एक आहट
तुम्हारे होने की
बार बार दस्तक देती है
और तुम
एकाधिकार करते जाती
मौजूदगी जताती हो
ये जानता है कोई
नहीं मिलना वाज़िब
और मुनासिब शायद...
हम तुम का मिलान संभव नहीं
तुम रखती ख्याल
भावों का जज्बातों का
लेश मात्र तक छल से परे
हो आज भी..
उतनी आत्मीय जितने निर्मल हम
लगती हो....तुम
जैसे रेलगा़डी की पटरियों सी
दूर दूर
हमीद के खरीदे चिमटे की तरह....
नदी के दो किनारे ...की तरह
मथानी का बिना रस्सी का होना
मंथन के दरम्यान
जिसे परस्पर दो माध्यम के
बिना मथे पाया नहीं जा सकता।
नाम की अर्थवत्ता
तुम अब उतने ही गहरे अन्तर्साध
जो कभी नहीं रही विलग ...अन्तर्मन से
हैं जितने सहज हम उतनी तुम
पर उतने ही विमल "हम" जितनी प्रिय.."तुम"
हैं वर्तमान इस धरा पर काबिज "हम तुम"
जितने अधूरे हम उतनी ही अधूरी तुम।
जितने समर्पित हम....उतनी समर्पित तुम।।
***विमल चन्द्राकर****
कानपुर
उत्तर प्रदेश
सोनी पांडे जी मेरी कविताओं को गाथान्तर जैसे चर्चित ब्लॉग में स्थान देने के सादर आभार।
जवाब देंहटाएंऔर बेहतर लिखने का प्रयास रहेगा।
विमल चन्द्राकर
सोनी पांडे जी मेरी कविताओं को गाथान्तर जैसे चर्चित ब्लॉग में स्थान देने के सादर आभार।
जवाब देंहटाएंऔर बेहतर लिखने का प्रयास रहेगा।
विमल चन्द्राकर