मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014

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नाम :रुचि भल्ला जन्म :25 फरवरी 1972 शिक्षा : बी. ए. बी .एड. प्रकाशन: विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित (परिकथा में प्रकाशित) प्रसारण : इलाहाबाद -पुणे आकाशवाणी से कवितायें प्रसारित कवि -सम्मेलन सम्पर्क: एम -506 सिसपाल विहार, सेक्टर-49 गुडगाँव -122018 हरियाणा मो .09560180202 ई. मेल ruchibhalla72@gmail.com


आत्म कथ्य
जब मुझे लगता है कि किसी बात पर अपने तरीके से कुछ कहना चाहिए तो मेरी लेखनी चल जाती है और कोरे कागज़ पर कविता की सूरत में बदल जाती है।मेरे लिए कविता दुखों से साक्षात्कार और सुखों से अनुभव है।सांसारिक, राजनैतिक, प्राकृतिक और मानसिक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति से शब्द पुंज का सृजन करना ही मेरे लिए कविता लिखना है।


रूचि भल्ला जी छोटी -छोटी कवितायें लिखती हैं पर उसमें गहरे भाव पिरोना उनके लेखन की खूबसूरती है ,विभिन्न परिस्तिथियों  का वह सहज ,सूक्ष्म अवलोकन कर उन्हें अपने अनोखे अंदाज़ में प्रस्तुत करती हैं। तो ............. आइये आज गाथांतर के ब्लॉग पर उनके रचनायों का आनंद ले ………… 







1) एक बात
एक बात कहूँ
यहाँ कत्ल सिर्फ़ उसका ही नहीं होता
जो आया है संसार में
हत्या उसकी भी हो जाती है
जो अजन्मा है संसार में
राज़ की ये बात जानती हैं
घर -घर की चश्मदीद दीवारें
जो सुनती हैं
कंठ में घुटती सिसकियों को
अजन्मी कराहती आहों को
पर हत्या की गवाही नहीं दे सकतीं


2) उसके सवाल
जब उसने किया सवाल
मुझे कब दिखलाओगी
वो बीते बरस की गौरेया-मैना
सूरज के संग भोर का
गाना गाती भूरी चिड़िया
गिल्लु क्या सिर्फ़ कहानी में है
किधर उड़ गया कठफोड़वा
चारों ओर जवाब तलाशा मैंने
फिर हाथ थाम कर बोली मैं
एक शर्त पर मिलेंगे वे सब
सृष्टि ले अगर जो पुनर्जन्म



3) वो गोरा -चिट्टा बच्चा
चमचमाती कार में
बैठा हुया
वो गोरा-चिट्टा बच्चा
जब भी खेलने जाता है
बीच रास्ते में
झुग्गी के सामने
उसे दिखते हैं
अपनी माँ के संग खेलते
कई फटेहाल बदरंग बच्चे
गोरा चिट्टा बच्चा
मुड़-मुड़ कर उनके
खेल देखता है
कार
आया को साथ लिए
पार्क की ओर मुड़ जाती है



4) मलबा
घर से थोड़ी दूर
बस चौराहे के पहले
एक मंदिर था कई सालों से
मेरी आदत में शामिल था
उस मंदिर से रोज़ मिलना
कुछ रोज़ हुए मैंने देखा
अब मंदिर नहीं
वहाँ मलबा है
अब जब भी गुज़रती हूँ उस राह से
उस ओर देखने की आदत
बदलती नहीं
मस्तक खुद ब खुद झुक जाता है
और दृष्टि अटक जाती है जाकर
मलबे के उस ढेर में


5) पेड़ों से मुलाकात
बहुत ज़रूरी है सिखलाना
बच्चों को अक्षर ज्ञान
लेकिन उससे कहीं ज़रूरी है
बच्चों की करवायी जाए
पेड़ों से मुलाकात
वहाँ घनी छाँव के नीचे
बिठा कर उन्हें
पहले सिखलाया जाए
कैसे बनी है
'क' से कलम
'क' से काॅपी
'क'से किताब



6) गहरी नींद
जब छोटी थी
दादी हर रात
कहानियाँ सुनाती थी
और मैं सुनते सपनों में खोते
मीठी नींद सो जाती थी
अब न दादी है
न कोई कहानी
मैं फ़िर भी सो जाती हूँ
दिन थका देता है
रात सुला जाती है
गहरी नींद



7) ईश्वर मौन रहा
खामोश रहा ईश्वर
जब मैंने पूछा
प्रभु !
तुमने जगत बनाया
फिर यह मिथ्या क्यों
क्यों तजने को कहा
अपने ही बसाये संसार को
मृत्यु क्यों दी
जीवन देने के बाद
क्यों तोड़ा अपने ही
आस-विश्वास को
बिल्कुल मौन
बस देखता रहा
सन्नाटे से भरा
अपना नीलाम्बर

8) झरना
उसकी वो
कुँवारी हँसी
प्रेमपगी खिल-खिल हँसी
झर - झर झरने सी
वो हँसती जाती
मैं भीगता जाता
आज कई बरसों बाद
अचानक वो दिखी
देखते ही खिल-खिलाई
और मैं उसे देखता रहा
सुनता रहा
उसकी हँसी
खोजता रहा
वो झरना
जिसमें भीगता था कभी



9) राजपथ को गयी लड़की
पीपल का पेड़
रहता होगा उदास
तेरे घर की खिड़की को रहती होगी
तेरे आने की आस
छत पर टूट-टूट कर बिखरती होगी
धूप की कनी
जहाँ तुम खेला करती थी नंगे पाँव
चाँद को आती होगी तुम्हारी याद
घर का कोना होगा खाली
तुम्हारे होने के लिए
एक रात मेरी नींद में उतर कर
मेरे राष्ट्रध्यक्ष ने बतलाया
तारकोल का काला - कलूटा राजपथ
रोता रहा कई दिन कई रात
तुम्हें निगलने के बाद



10) सुनो! तुम
जब कोई भूखा
दे तुम्हें दो रोटी के लिए दस्तक
सुनो !तुम दरवाज़ा न खोलना
कोई फायदा नहीं इसमें
लेकिन हाँ!  याद से हर
पूर्णिमा-अमावस्या
पंडित जी को ससम्मान न्यौता भेजना
जी भर खिलाना
नकद-कपड़ा भी देना
वो देगा तुम्हें ढेरों आशीर्वाद
तेरे पुरखों की आत्मा रहेगी तृप्त
और तेरा घर भी रहेगा सदा
धन- धान्य से भरा.

- रुचि भल्ला

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