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| (चित्र गूगल से साभार ) |
और
हर बार सोचती थी कि उम्र के बढ़ने के साथ साथ अपने कुछ सपने मैं खुद के लिए बचा कर रख लूँ
पता नहीं कल कोई सपना मुझ से आ कर ये ही शिकायत कर दे कि ‘मैंने सपने देखना क्यों बंद कर दिया?’ कहीं सपने मुझ
से रूठ ना जाए? ये सोच कर
कि ये तो अब सपने देखती ही नहीं,हमारा इसकी नींदों में अब
क्या काम ?इस लिए मैंने कभी सपने देखने बंद नहीं किये,
तो जिंदगी ने एक ही झटके में मेरे सारे सपने मुझ से छीन लिए |
और
अपना बचपन...जब बचपन की याद आती है-रंग-विरंगी चिड़ियों को देख कर खुश होना,खिले हुए
फूलों कि देख कर सम्मोहित होना,गाते हुए पक्षियों की आवाज़
अपने गले से निकालने की कोशिश करना,किसी व्यक्ति के बोलने पर
उसकी नक़ल उतारते हुए खिलखिलाते रहना और संगीत को सुनने के बाद उस संगीत में खोकर
फालतू में ठुमके मारने शुरू कर देना......ये सब ही तो मेरी जिंदगी के हिस्से थे ना
..ठीक जिंदगी की सोचों की तरह | जो अब सब बिखर गए हैं |
जिंदगी में हम
बड़े ही क्यों हो जाते हैं,क्यों
बड़े होते ही जिंदगी और रिश्तों में बनावट आने लगती है? और
मैं अपने रिश्तों को लेकर कर आज ये बेचैनी क्यों महसूस कर रही हूँ?क्यों ये दौर मुझे बहुत कठिन लग रहा है?नहीं जानती कि ये बदलाव क्यों आया है मेरी जिन्दगी में ?कहाँ गया मेरा उतावलापन,मेरी वो गुंजन जिसकी गूंज
में मैं हर वक्त उत्साहित रहती थी |
उफ़्फ़|अब ये अधूरे प्यार की तड़प, वक़्त है की कभी काटे नहीं
कटता और कभी कभी यूँ भागता है ,जो रोकने पर भी नहीं रुकता...ना मेरे लिए और ना किसी
के लिए | मेरा अकेलापन मुझ पर हावी होने लगा है.....समझ नहीं पा रही हूँ कि अब किस राह चलूँ?
वो जो समाज
दिखाता है या वो जो मेरा मन कहता है....समाज की
मान कर चलती हूँ तो मेरा मन अंदर ही अंदर टूटता है,दर्द अपनी सीमाओं को तोड़ने को आतुर हो उठता है और ये अकेलापन मानसिक
शांति को भंग करने लगता है |पर जिस राह बढ़ने के लिए मन व्याकुल हो उठा है उसकी मंजिल क्या है... ये मै
नहीं जानती |
मुझे, मेरे प्रेम की राह का हर
कदम असीम शांति देता था...वो ख़ुशी देता है जिस से मैं आज तक खुद को वंचित मानती आई थी वो साथ
जिसके बिना मैं अधूरी जिन्दगी जीने को मजबूर थी.....मेरा मन कहता है कि मेरा अनुभव मुझे धोखा
नहीं देगा...और अगर दिमाग की सुनती हूँ तो वो हर वक़्त
मुझे ये ही कहता है कि ''भूल जा उसे, जिसने तुझे यूं अकेला तड़पने के लिए छोड़
दिया |तूने तो उसे दिल से अपनाया था पर वो अपने ही घमंड का
आवरण ओड़े तुझे धोखा देता रहा |उसकी सच्चाई जान लेने के बाद
भी इतनी तड़प से उसे याद करना बेवकूफ़ी है''बस अपनी इसी सोच को
लेकर अपने आने वाले कल से डर जाती हूँ.....क्या करूँ मैं ?
कभी रात को सोती
थी तो चोरी का सपना देखती थी कोई अंजान इंसान आता है और मेरी सबसे प्यारी प्यारी चीज़ को चुरा कर मुझ से अलग करने का प्रयास कर
रहा है ...और मैं चुपचाप खड़ी हूँ, उसके कुछ कह नहीं पा रही ..आवाज़ निकालने की, चिल्लाने की भरसक कोशिश
करती हूँ पर मेरी आवाज़ मेरे ही भीतर कहीं दब गई है ..मैं चिल्लाती
हूँ पर कोई सुनता नहीं हैं | बहुत हाथ पैर मारती हूँ कि किसी तरह उस इंसान को पकड़ लूँ जो
मेरी प्रिय वस्तु को चोरी करने आया है |
मेरी ही आवाज़
मेरे ही अंदर दम तोड़ देती है और मैं खुद के आँसू गिरने से रोक नहीं पाती हूँ और
दूसरे ही पल मैं चलते चलते ऐसे ही किसी पहाड़ की ऊँची छोटी पर
जा खड़ी होती हूँ .. जहाँ आस पास कोई नहीं हैं ...और सांय सांय चलती तेज़
हवा,और
तभी किसी के छूने का अहसास या कोई एक अंजाना सा हाथ मुझे उस चोटी से धक्का देकर
मुझे गिराने की कोशिश में है और मैं खुद को किसी तरह बचा लेती हूँ | मैं उसे अंजान शक्स की शक्ल नहीं देख पा रही हूँ बस उसे मैंने महसूस किया
है और तभी डर कर उठा बैठती हूँ और अपने सपने को याद करते हुए भी एक ओर नयी सोच मुझ
में हावी होने लगती है कि'ये सब क्या था?कैसा सपना था?क्या कोई है जो मुझे कुछ बताने का
प्रयास कर रह है कि जिंदगी वैसी नहीं जैसा मैं सोचती हूँ ?पर
कुछ भी समझ पाने में, मैं खुद को नाकाम पाती हूँ |
अगर
उस से केवल मेरा प्यार ही होता तो भी मैं खुद को संभाल लेती, पर यहाँ मैं
उसके साथ आत्मा तक जुड़ चुकी थी इस वजह से जब भी मैं अपने अतीत को सोचती हूँ तो
मुझे मेरे अधूरे प्यार की कसक अब तक सुनाई पड़ती है |उस अधूरे
प्यार की गूंज अभी भी कभी कभी मेरे मन को भारी कर जाती है | ओर एक वक़्त ऐसा था जब मैं रस्ते भर...बार बार मोबाइल को उठा उठा कर देखने
को मजबूर हो जाया करती थी | उसके फोन की एक घंटी सुनने को
बेताब रहती थी |उसके एक संदेशे के इंतज़ार में पूरा वक़्त कट जाया करता था |नया दिन शुरू होता था
उसके एक फोन के इंतज़ार से पर उसका ना कोई फोन आता था और ना ही कोई मेसज, फिर भी मेरा नादान दिल मुझे ये ही समझता था कि हो सकता है वो सच में बहुत व्यस्त हो.....याद तो ....वो भी कर रहा होगा, मेरी तरह तड़पा तो वो भी होगा...बार बार की बेचैनी उसने भी महसूस की होगी...ओह हो!,मेरी ये तड़प कैसी थी |
आज भी जब अपनी
उस जिंदगी को सोचती हूँ कि 'ज़िंदगी के और मेरी पढ़ाई के पाँच साल सिर्फ उसके एक फोन के
इंतज़ार में निकल गए ..कि वो मुझ से सिर्फ इतना ही कह दे''डरो
नहीं ...मैं साथ हूँ तुम्हारे'' ये सुनने के लिए, मेरा इंतज़ार आखिरी साँसे ले रहा था इस उम्मीद पर कि शायद वो खुद या उसका
कोई फोन ही आ जाए मेरे पास |ना उसका कोई फोन आया और ना ही
कभी वो लौट के मेरे पास नहीं आया |अब उसके लौट आने का इंतज़ार
खत्म हो चुका है फिर भी कभी कभी मुझे ऐसा लगता था कि काश एक बार सामने से आ कर वो
मुझे समझा दे कि 'मुझे भूल जाओ' | जिंदगी को बिंदास जीने वाली मैं, आज भी सिर्फ उसके बार
में ही क्यों सोचने बैठ जाती हूँ.....क्यों....क्यों ???
मेरा मन,मेरा विश्वास गलत साबित हुआ.....उस की अपनी ही एक दुनिया थी
और उस दुनिया में मेरी और मेरे प्यार के लिए कोई जगह नहीं थी |वो मेरे जैसा बिलकुल भी नहीं था और होता भी क्यों .....हम
किसी बंधन के तहत बंधे हुए नहीं थे .....किसी वादे की डोर ने हम दोनों को जोड़ा नहीं हुआ था और ना ही अपनी जिंदगी को
हमने जीने मरने की कसमों में जकड़ा हुआ था |वो आज़ाद था ...मन और अपने कर्म से भी |
दृढ़ संकल्प और
हताशा के बीच मैं अब एक रेखा खींच ली थी | किसी का साथ आँखों में आँसू देता हैं और किसी
का साथ उन आंसुओं को सोख लेता हैं ...तो जीवन में किसका साथ महत्वपूर्ण होगा ....अब ये बात मेरे लिए सोचने की थी और बहुत बार
अकेलापन मुझे ये सोचने को मजबूर कर देता था कि हम हमेशा उसके ही पीछे ही क्यों भागते
हैं जो हमारे साथ दो कदम भी साथ चलने को तैयार नहीं है |क्यों हर किसी का दिल उसी इंसान के लिए तडपता हैं जो उस
दिल को ठेस देकर तोड़ देता हैं | मेरी ही सोच हर बार मुझे से एक ही प्रश्न करती है ''कि आखिर मैं अपने ही साथ ये लुका-छिपी का खेल क्यों खेल रही हूँ ?
आज भी जब अपनी
उस जिंदगी को सोचती हूँ कि 'ज़िंदगी के और मेरी पढ़ाई के पाँच साल सिर्फ उसके एक फोन के
इंतज़ार में निकल गए ..कि वो मुझ से सिर्फ इतना ही कह दे''डरो
नहीं ...मैं साथ हूँ तुम्हारे'' ये सुनने के लिए, मेरा इंतज़ार आखिरी साँसे ले रहा था इस उम्मीद पर कि शायद वो खुद या उसका
कोई फोन ही आ जाए मेरे पास |ना उसका कोई फोन आया और ना ही
कभी वो लौट के मेरे पास नहीं आया |
घर वालों की
मर्ज़ी और दबाब के चलते मैंने अपनी नई दुनिया में प्रवेश कर लिया |''प्रभाकर'' से मेरी शादी हुई और ये मुझे हनीमून पर ले जाने से पहले प्री-हनीमून पर
गोवा ले आए |''प्री-हनीमून'' आज कल का
नया चलन है|नव-विवाहित जोडे अपने हनीमून पर जाने से पहले
शादी की थकान उतारने के लिए 2-4 दिनों के लिए अपने आस-पास की जगह पर चले जाते हैं
और गोवा प्रभाकर को खास तौर पर पसंद है ये बात वो खुद से मुझे बता चुके है,इस लिए हम दोनों गोवा आ गए |
और मेरी जिंदगी
के वो १० मिनट जब....मैं सागर किनारे धीरे धीरे चल रही थी ...अपनी
ही मस्ती में, अपने ही ख्यालों को साथ लिए,मोबाइल पर गीत सुनते हुए,कब मैं इतनी खो जाती हूँ कि मुझे ये अहसास तब होता हैं जब एक तेज़ लहर आती हैं और मेरे पैरों को भीगो
कर वापिस लौट जाती हैं ...और रेत पर पड़ते मेरे
पैरों के निशां वो अपने साथ ले जाती हैं...पीछे मुड कर देखने पर...मुझे सिवाए बिखरी रेत ,कुछ सीप और बहुत सारे कंकर मिलते ही हैं....जो चलते
हुए पैरों के तलों में चुभते हैं ,फिर भी उस गीली रेत पर नंगे पैर चलना मेरे मन को सुकून देता हैं |
बीच समुन्द्र
में एक अकेले पंछी सी मैं, ऐसे जैसे कोई स्थल खोज रही थी जहाँ मैं अपनी जिंदगी के पाँव जमा सकूँ इसी
लिए ये गीली रेत मुझे बरफ की ठंडक का अहसास दे रही थी, पर ना जाने कैसे और कब अपने किनारे से दूर निकाल आई थी,समुन्द्र में उसके खतरे के निशां को पार कर गई, जहाँ लहरें अपना प्रकोप दिखाने से नहीं
डरती.....ये मुझे भी नहीं पता चला...हाँ ऐसा ही होता हैं इस उम्र के प्यार और उस से मिले धोखे में |
तभी आस पास कही
ये गाना भी बज रहा था....''किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी हैं '' और दूसरी तरफ ........मेरे मोबाइल में भी एक गाना चालू था ''एक शाम*** तुम्हें जब मिले कभी फुर्सत
मेरे दिल से बोझ उतार दो, मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे
भी एक शाम उधार दो..''......जिस भी गायक का ये गाना था और उसकी ये आवाज़, मुझे आज भी मदहोश करने को बहुत थी ''|| पर अब मेरी जिंदगी का रुख बदल चुका था |क्यों कि मैंने कभी अपने अतीत को, अपने वर्तमान पर हावी नहीं होने दिया था
क्यों कि मेरा वर्तमान मेरे अतीत से कहीं अधिक समर्पित और सुरक्षित था |
तभी किसी के
खींचने से मेरी तन्द्रा टूटी और उनकी आवाज़ से मैं सपनों
की दुनिया से निकल कर अपनी हकीकत की दुनिया में वापिस आई ,ये आवाज़ और मेरी बाज़ू पकड़ कर एक तेज़ लहर से मुझे बचाने वाले और कोई नहीं मेरे पति थे |एक तरफ मेरा सच था ,मेरा वर्तमान और मेरी
सोच में मेरा अतीत जो एक पल के लिए आज फिर से हावी होने की कोशिश कर रहा था,पर आज एक बार फिर से मेरे सच ने मुझे मेरे अतीत के दर्द के पन्नो में डूबने से बचा लिया
था ||
समुन्द्र की एक
तेज़ लहर ने मुझे मेरे सच के सामने...मेरी ही दुनिया में
और मेरे वर्तमान में ला कर खड़ा कर दिया हैं तभी एक ओर तेज़ लहर आई
और मैं खुद को ना संभाल पाने की अवस्था में
लड़खड़ा गई पर मुझे फिर से प्रभाकर ने गिरने से बचा लिया पर मैं अपने हाथों में पकड़े मोबाइल और उस
में उसके संपर्क सूत्र को नहीं बचा पाई और यही से मैंने अपने अतीत को विदा किया और अपने
वर्तमान में ,मैं अपने पति के साथ अपने आज में लौट आई | चलते चलते बस ये ही मन में बार बार आ रहा था कि ..आज मेरे अतीत के उस सपने का भी अंत हो गया जो मुझे मेरे ही
रस्ते से भटकाने की कभी-कभी कोशिश भर करता था और मैं लौट आती हूँ अपनी ही जिंदगी
में ‘’इनके’’ साथ ||.''
ये सब कुछ सोचते सोचते ना जाने क्यों मुझे
ऐसा लगता है कि दो मोटी-मोटी विचारधाराएँ
दिमाग के अलग अलग हिस्सों से बाहर निकलने को क्यों आतुर होने लगती है ...सच में जिंदगी में कभी कभी
कुछ प्रश्नों के उत्तर कभी नहीं मिला करते,कभी नहीं ? एक बार फिर से जिंदगी ने रफ्तार पकड़ी और
मैं अपने आप को प्रभाकर के मुताबिक ढाल कर जीने की आदी हो गयी |मैंने प्रभाकर के प्यार और अपने विरोधाभास में जिंदगी को
बहुत अच्छे से जीने लगी थी | अब प्रभाकर में
बहुत दिल लगने लगा था| उसका हर छोटा बड़ा काम और उसका इंतज़ार मैं
अपनी खुशी से करती थी और वो अपने काम में व्यस्त मजबूरी से होते थे | ना इंतज़ार खत्म हुआ और ना ही प्रभाकर की
मजबूरी कभी खत्म हुई |पर उनके जीने का
वक़्त खत्म हो गया....वक़्त ने इतना भी वक़्त नहीं दिया कि मैं उनका बहुत लंबे समय तक
इंतज़ार करती.....उस से पहले ही उनकी इस जीवन से डोर ही कट गई |मेरा जीवन जहाँ से शुरू हुआ था वहीं आकार थम गया |
जिंदगी
तो अपनी ही रफ़्तार से आगे भागती है |जिंदगी से किसी अपने के चले जाने
का खालीपन क्या होता है वो मैंने अब जाना |पर अब मैं अपनी इस
बोझिल सी जिंदगी को किस दिशा में आगे लेकर जाऊं....मुझे कुछ समझ में नहीं आ
रहा....सर है की हर वक्त भन-भनाता है और
कनपटियों में दर्द बना ही हुआ है | और मन की पीड़ा मुझे चैन नहीं करने दे रही ...उनके चले जाने
का दुःख मुझ से सहन नहीं हो पा रहा | वक्त-बे-वक्त आँसूं हैं कि
अपने आप आँखों से निकल कर मुझे पुरानी यादें याद दिलाने चले आते हैं | आज उन्हें गए हुए पूरे पाँच
महीने हो गए हैं और एक पल ऐसा नहीं
कि मैं चैन से बैठी हूँ या सो पाई हूँ |
समझ नहीं आता अगर इन्हें ऐसे ही जाना ही था तो क्यों मेरे जीवन को उस दिन सागर
की आई ऊँची लहर से मुझे बचाया था|इन पाँच सालो में क्यों मुझे जिंदगी भर का प्यार और साथ दिया?क्यों ऐसी बहार बन कर आए कि इनके जाने के बाद मुझे जीवन को पतझड़ कहना भी कम लगता है ..इनके बिना मेरा जीवन इतना वीरान हो
गया है कि मेरे पास उसे लिखने के लिए और सोचने के
लिए शब्द ही नहीं |
अपनी जिंदगी में लौट कर आने के बाद से,हम दोनों बहुत करीब थे,तभी तो उनका यूँ इस तरह बिन बोले मेरी जिंदगी से निकल जाना,आज तक इस बात को मैं स्वीकार नहीं कर पाई हूँ | उस रात बेटे को उसके कमरे में सुलाने के बाद
.....हमनें अपने रूटीन के मुताबिक रात को सोने से पहले लेमन टी पी, एक ताश की बाजी लगाई .....और कुछ दिन भर
की बाते करते हुए सो गए ये जाने बिना की आने वाली सुबह हम दोनों का साथ कभी नहीं
होगा | रात में ही सोते-सोते ही प्रभाकर के दिल
ने उसके धोखा दे दिया, साइलेंट हार्ट फ़ेल ने मेरी दुनिया ही
उजाड़ कर रख दी |
प्रभाकर की
अस्थियों का विसर्जन में हरिद्वार जा कर कर आई हूँ ...हर निशानी को प्रवाह मैंने कर दिया
है...उनका दसवाँ और तेहरवीं मना ली...उनके नाम का पाठ रख
का उसका भोग भी डाल दिया गया है ...फिर भी वो क्यों मेरे दिमाग में एक धुँए की भांति अब भी छाए हुए है ?
जीवन यात्रा इतनी कठिन क्यों है ? क्यों ये मातम खत्म होने पर नहीं आ रहा ? क्यों मैं अभी तक आगे नहीं बढ़ पाई हूँ ? हर विचार, हर याद....इनका शोक मना कर शांत हो चुकी है पर मैं अभी तक अपने ही चक्रवात में फंसी हुई हूँ ...क्यों? इस का क्यों कोई भी जवाब मेरे पास नहीं है |
मेरे जीवन की ये यात्रा, उम्र के इस पड़ाव पर यूँ इस तरह मुझे इस रूप में मिलेगी, ये मैं भी नहीं जानती थी | मैंने तो बस एक अच्छे जीवन की कल्पना की थी पर इस तरह की विधवा जीवन की कल्पना तो मैंने कभी सपने में भी नहीं की थी ...जिंदगी का ये यू-टर्न ने मेरी पूरी ही जिंदगी को हिला कर रख दिया है| मेरे भटकाव को इन्होंने अपने प्यार से रोका और आज जब मैं इनसे इतना प्यार करती हूँ तो क्यों नहीं ये मेरे प्यार की खातिर खुद को खुदा के घर जाने से रोक सके ?
जीवन यात्रा इतनी कठिन क्यों है ? क्यों ये मातम खत्म होने पर नहीं आ रहा ? क्यों मैं अभी तक आगे नहीं बढ़ पाई हूँ ? हर विचार, हर याद....इनका शोक मना कर शांत हो चुकी है पर मैं अभी तक अपने ही चक्रवात में फंसी हुई हूँ ...क्यों? इस का क्यों कोई भी जवाब मेरे पास नहीं है |
मेरे जीवन की ये यात्रा, उम्र के इस पड़ाव पर यूँ इस तरह मुझे इस रूप में मिलेगी, ये मैं भी नहीं जानती थी | मैंने तो बस एक अच्छे जीवन की कल्पना की थी पर इस तरह की विधवा जीवन की कल्पना तो मैंने कभी सपने में भी नहीं की थी ...जिंदगी का ये यू-टर्न ने मेरी पूरी ही जिंदगी को हिला कर रख दिया है| मेरे भटकाव को इन्होंने अपने प्यार से रोका और आज जब मैं इनसे इतना प्यार करती हूँ तो क्यों नहीं ये मेरे प्यार की खातिर खुद को खुदा के घर जाने से रोक सके ?
पता नहीं क्यों मेरी मेरी सोच बार बार ठीक इनकी मौत वाली
रात पर आ कर ठहर जाती है ...जिसे चाह कर भी अपने मन से निकाल नहीं पा रही हूँ | मैंने प्रभाकर की
आंखो में अपने लिए असीम प्यार और खुद के जीने की लालसा देखी थी |
'' ऐसा भी होता है '' कि कोई इंसान
रात को ठीक-ठाक सोये और सुबह वो लाश के रूप में मिले और उसका कोई अता-पता ही ना हो
की वो गया कहाँ ? जबकि मैं उनके साथ सोयी हुई थी,उनके करीब, एक ही पलंग पर सोये और प्रभाकर को 30 सेकंड भी नहीं लगे,मेरा साथ छोड़ कर जाने के लिए |मेरी नींद मेरी दुनिया
ही पटल दी |इस जिंदगी ने मुझे दूसरी बार धोखा दिया है |क्या मेरी नींद इतनी गहरी
थी कि प्रभाकर को आए अटैक ने इनको उसी समय मौत ने अपनी
आगोश में भी ले लिया | एक बार फिर से उस रात...मेरी जिंदगी ने मुझे धोखा दे दिया | क्यों जिंदगी हर बार मुझे ही धोखे देती है ?
अपने मन को और
दूसरों को मन का चिंतन समझाने वाली ''मैं'' अपनी किस्मत से ही हार गई | दूसरों को समझाना कितना आसान है कि सच का सामना करो, जो है उसे स्वीकार करो और आगे बढ़ो ...पर अब जब ऐसा मेरे साथ हुआ
तो मैं ये विश्वास नहीं कर पा रही कि वो एक ओस की
बूंद की तरह मेरा साथ छोड़ कर जा चुके है और वो
सब बाते जो कभी मैं किसी से भी कह दिया करती थी,अब अपने लिए उसे अमल करना कितना कठिन हो रहा है, उसके एक स्पर्श के लिए,मैं इतना तरस जाऊँगी ये मैं भी नहीं जानती थी |उस एक रात ने मेरी पूरी दुनिया ही बदल कर रख दी |
अब मेरे पास कोई शब्द ही नहीं बचे थे कि मैं किसी से किसी भी तरह की कोई शिकायत करती |उस ईश्वर ने ही मेरी नियति लिख कर भेजी थी उसे मैं कैसे बदल सकती थी .....ये
तो उस खुदा की शान में गुस्ताखी होती ना |
अब जब भी कभी नज़र उठा कर देखती हूँ तो , लोगो की नज़रों में ,मुझे अपने से ज्यादा ओर कोई बेचारी और
दयनीय नहीं दिखती | हर किसी के आँखों और मन में एक ही भाव...’बेचारी ! देखो इती सी
उम्र में विधवा हो गई’ |और मैं नजरे झुकाए
अपनी किस्मत पर रोने के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं कर सकती हूँ |
मेरी जिंदगी तो जा चुकी थी अब लड़ती तो भी किस से और किसके लिए और इस से मुझे
क्या हासिल होने वाला था |उस दिन अपनी जिंदगी को घर में एक लाश के रूप में
देखते हुए, मेरा शरीर मेरे पाँवों का साथ नहीं दे रहा था| डॉ एक
ऐसा शब्द है जो जिंदा इंसान में वो आखिरी उम्मीद की किरण का संचार करता है कि शायद
उसका प्रिय अब भी जिंदा है पर यहाँ डॉ की रिपोर्ट्स, ई.सी.जी, अल्ट्रा-साउंड, और ना जाने कितनी ही तरह के पपेर्स मेरे हाथ में थे, जिस में लिखा था '' हार्ट फ़ेल''|
अंजु चौधरी अनु

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