बुधवार, 9 नवंबर 2016
सोनी पाण्डेय की कहानी
बुधवार, 2 नवंबर 2016
अमन त्रिपाठी की कविताऐं
१. लड़की मुसलमान है ___
किसी को नहीं पता था
कि वो मुसलमान है
शक्लोसूरत हिंदू जैसी
चलना ढलना हिंदू जैसा
बोलना बतियाना वैसे ही
जैसे वहाँ हिंदू बोलते थे
वो सब तो ठीक था!
हाथ भी जोड़ती थी
पूजा तक में आती थी
लड़की थी
अचानक किसी रोज़
लोगों को पता चला-
वो मुसलमान है
अजी वो,
हाँ वही वही
हाँ वही लड़की
वो मुसलमान है
लड़की - मुसलमान है !
***
हिंदू दिखना ज़्यादा ज़रूरी था
इंसान होने की बजाय हाथ जोड़ना
ज़्यादा ज़रूरी था
सर झुकाने इज़्ज़त देने की बजाय
हमारी सभ्यता में दिखना ज़्यादा ज़रूरी था
होने की बजाय
***
जब तक लोगों की नज़र में वो हिंदू थी
वो आम लड़की थी
जब उसके मुसलमान होने का पता चला
वो खास लड़की थी
जैसे वहाँ कोई और लड़की थी ही नहीं
लड़की ! वो भी मुसलमान !
______________
२. आत्महत्या और चांद ___ ...
और चांद लौटता रहा
देर-देर तक उसके दरवाज़े पर
थपकियाँ देकर चांद चिंतित था
उसने धरती से हवाओं, फूलों,
चिड़ियों और पौधों की एक सभा बुलायी
और उसने जानना चाहा कि क्या धरती पर जीवन की मात्रा कम हो रही है
चांद फुटपाथों पर भटका
और उसने फुटपाथ पर सोने वाले हर आदमी के चेहरे के अंदर झांककर देखा
चांद नदियों से होकर गुजरा और उसने नदियों के बहने की आवाज सुननी चाही
चांद सोते हुए बच्चों के खिलौनों के पास गया चांद झगड़ते हुए भाई बहनों के पास गया
चांद, अपने प्रेमी की याद में रोती प्रेमिका के पास भी गया
वह हर जगह गया
लेकिन वह नहीं जा पाया उस दरवाजे के पार ! कई-कई दिनों तक चांद लौटता रहा देर-देर तक उसके दरवाजे पर थपकियाँ देकर-
***
दरवाजे के तिलिस्म से बाहर ले चलूँ
उससे पहले एक बात - मैं कल्पना करता हूँ कि एक लड़की,
जो अरसे से आत्महत्या के बारे में सोच रही है बल्कि इस समय भी वो किसी से वैसी ही बातें कर रही है,
से वो पूछे - क्या तुम्हारी बालकनी से चांद दिखता है ?
मैं कल्पना करता हूँ कि लड़की जो आत्महत्या करना चाहती है
वह इस बेमौके पूछे गए सवाल पर झुंझलाए और धीमे से कहे - क्या वाहियात सवाल है.
***
चांद जो कि दरवाजे पर थपकियाँ दिये जा रहा है
और अंदर वह लड़की झुँझलाकर कहती है-
क्या वाहियात सवाल है...
चांद आज भी चला जाता है
मैं भी चाहता हूँ वह चला जाय झुँझलाने के बाद शायद वह लड़की बढ़े जीवन की तरफ और दरवाज़ा खोलकर बालकनी में आने पर उसे चांद अपनी जगह पर ही दिखना चाहिये - ______________
३. दीवाली में ___
पता चला है
दीये लाने की कवायद में-
श्रीराम कोंहार ने
अब दीये बनाना बंद कर दिया है
सुरेन्दर चपरासी के घर भी दीवाली आएगी
और सबेरे से चार बार रिरिया चुका है पैसे को पैसे मिलें तो उसके घर कुछ सामान आ जाए पांचवीं बार रिरियाने के लिये
फिर काम में लगा है
अखबार में खबर है -
इतने जवानों की मौत और त्योहारी माहौल खराब होने का एक भद्दा सा अभिनय
बाहर के सामान उपयोग में नहीं लाएँगे
दीये जलाएँगे और गरीबी दूर करेंगें
इस तरह सुन रहे हैं ताकते हुए कोंहार, चपरासी...
-
अमन त्रिपाठी
शिक्षा - बी.टेक तृतीय वर्ष
लखनऊ
मो. नं. - 9918260176
रविवार, 30 अक्तूबर 2016
रुचि भल्ला की कहानी
कहानी
---------------------- शालमी गेट से कश्मीरी गेट तक .
......... ---------------------------------------------------- बूढ़ी होती 2015 की शाज़िया की यादें अब भी 1945 सी जवान हैं। उम्र की देह बूढ़ी होती चली जाती है पर देह के अंदर दिल सदाबहार के फूल सा ताजा रह जाता है। शाजिया के घर की खिड़की पर 1945 वाली याद हर शाम जाकर खड़ी हो जाती है उसी ताज़गी के साथ ....गुलाबी आँखों से कुमार की छत को देखती हुई .... वहाँ पतंग उड़ाता कुमार अब रहता नहीं है पर शाजिया को दिखता है अब भी वहीं । बीते बरसों में शाज़िया की आँखों में मोतियाबिंद उतर आया है पर कुमार अब भी वैसा दिखता है उसे उन आँखों से । अठारह का कुमार .... और वो सोलह के गुलाबी गालों वाली ।1945 में कुमार छत पर शाजिया के लिए आता था ।पतंग तो बहाना था । उसे शाजिया के संग वक्त बिताना होता था ।वो पतंग के साथ बहुत कुछ लाता कभी नीले कंचे कभी हरी चूड़ियाँ कभी खट्टा चूरन मीठे अमरूद चमेली के फूल लेमनचूस की गोलियाँ मखमली मोरपंख और गुलाबी कविताएँ ... शाजिया भी उसके लिए लाती थी ... परांठे में मक्खन की पर्तें लगा कर... हाथ में आम के अचार का महकता टुकड़ा छुपा कर । वक्त पतंग के साथ उड़ता रहा कुमार चौबीस का वो बाइस की हो गई....तभी एक रोज़ कुमार चला गया कहीं आगे की पढाई करने ....और जाते हुए शाजिया की खिड़की को दे गया लंबा इंतजार। जाते-जाते उसके हाथ कोई वादा तो नहीं दिया पर उसके हाथों में गीली मेंहदी की खुशबू वाली याद थमा गया। शाजिया उस खुशबू के साथ खिड़की पर खड़ी रहती ।ऊन के गुलाबी गोले साथ लिए , इंतजार की सिलाईयों पर तारीखों के फंदे डालती रहती। कुमार के लिए मेंहदी की खुशबू वाले मफलर बुनती जाती शाजिया अब बड़ी हो रही थी । साथ ही बड़ा होता जा रहा था हाथ में थमा इंतजार की ऊन का गोला भी । ये बात उन दिनों की है जब एक घर के आँगन में गुलाब खिलता तो खुशबू घर से जुड़े कई आँगनो में महकती थी .... पतंगें उछलते -कूदते कई घरों की छतें लाँघती जाती थीं । घरों के दरवाजों पर नाम बेशक अलग होते पर लोग घरों के अंदर एक दिल के होते थे ।वो वक्त ही ऐसा था .... कहते हैं वक्त सदा एक सा नहीं रहता , घूमता है उसका पहिया और देखते-देखते घूम गया । वक्त की आयी इस तेज आँधी में पतंगें फड़फड़ायीं .... गमले टूटे ..... गुलाब से खुशबू का लाल रंग बह गया ।बहुत कुछ बदला इस बीच .... नहीं बदला तो शाजिया का कुमार के लिए इंतजार। वो खिड़की से देखती ....उसे उड़ती पतंग दिखती ... कुमार नज़र नहीं आता .... कुमार पतंग के साथ उड़ते हुए कहीं दूर निकल गया था ...... इतना दूर कि शाजिया की आँखें खिड़की से उसका पीछा नही कर पातीं । ....इस इंतजार के साथ शाजिया अब बड़ी हो रही थी ... बड़ी हो रही थी उसकी उम्र ..... और ब्याह दी गई शाजिया एक दिन ..... विदा हो गई नए घर में .... ये नया घर सारा उसका अपना था .... नहीं थी तो केवल उसके कमरे की खिड़की। वैसे ये खिड़की बहुत बड़ी थी ....दूर तक दुनिया दिखती थी ... सिर्फ कुमार के घर की छत नज़र नहीं आती थी वहाँ से। शाजिया खिड़की बंद रखती थी। उसके हाथ अब घर के कामों में उलझे रहते ..... बुनाई करने का उसे वक्त नहीं मिलता .... और वैसे भी सर्दियों का वो गुलाबी मौसम बीत चुका था। शाजिया की उंगलियां अब क्रोशिया बुना करतीं इस नए मौसम में। घर की साज-सजावट का सामान बुनतीं ....मेजपोश .... चादर कुशन सिरहाने के गिलाफ.....। कुछ दिन बीते .... शाजिया मायके जा रही थी अम्मी-अब्बू के पास। ट्रेन पटरियों पर दौड़ रही थी ... दौड़ रहा था संग-संग शाजिया की आँखों का इंतजार .... शाजिया अपने घर की गली तक पहुँची ही थी कि उसके घर की खिड़की से आती सेंवईं की खुशबू दौड़ते हुए उसके गले जा लगी । घर के बाहर तांगा आ रुका।तांगे से नीचे उतरती शाजिया के साथ उसकी उम्र भी उतरने लगी , वो 1945 की हो आयी ।दौड़ते हुए अपने घर से गले मिली और भागते हुए जा पहुंची अपने कमरे में और रुक गई जाकर खिड़की के पास । शाजिया अर्से बाद खिड़की खोल रही थी पर अब वहाँ खिड़की के सामने कुमार की छत नहीं थी ।वहाँ उस छत पर अब सकीना खड़ी थी उसकी छुटपन की सहेली हाथ में किताब लिए । शाजिया कुमार को तलाश ही रही थी कि तभी कमरे के अंदर आते हुए अम्मी ने बताया, " सकीना के अम्मी-अब्बू ने कुमार का घर खरीद लिया है ।" चाय का कप मेज पर रखते हुए अम्मी बोल रही थीं , " एक रात अचानक बहुत तेज हवा के साथ आँधी चली शाजिया.... बहुत तेज तूफान था उस रात ....जलजला आया था शहर में .... और बहुत कुछ तबाह कर गया ... गिरा गया कई घरों की नींव ....उड़ा कर ले गया अपने साथ कई घरों की छतें .... उस रात कुमार का परिवार यहीं रुक गया था हमारे घर ....सुबह मुँह अँधेरे सरहद पार कर गया। सुना है ...अब दिल्ली में रहता है उनका परिवार ।" अम्मी की आवाज़ काँप रही थी उनके काँपते हाथों में नीले रंग का मखमली डिब्बा भी काँप रहा था ।शाजिया के हाथों में थमाते हुए बोलीं, "जाते हुए कुमार ये तुम्हारे लिए दे गया है, तुम्हारी शादी का तोहफा। "अम्मी डिब्बा थमा कर चली गईं । शाजिया ने कँपकँपाते हाथों से उसे खोला....डिब्बे में काँच की हरी चूड़ियाँ थीं ......शाजिया और कुमार का पसंदीदा हरा काँच रंग ।शाजिया हाथों में वो चूड़ियाँ पहनने लगी , अपने हाथ उसने कलेजे से लगा लिए। चूड़ियाँ कुमार की याद से खनकने लगीं। खनकती चूड़ियों में से आम के अचार का स्वाद उसके कमरे में महकने लगा ....। यादें कच्चे आम सी हरी हो आयीं ....इतनी हरी कि शाजिया पर आम और चूड़ियों का हरा रंग उतरने लगा। शाजिया हरी हो आयी। ....अलमारी खोल कर सिलाईयाँ निकाल बैठी और बुनने लगी कुमार की यादों का अधूरा मफलर .... तबसे बुन रही है शाजिया खिड़की पर खड़ी हुई ..... फिर ससुराल नहीं लौटी ...। सरहद के आर-पार पहरा देते सिपाही ये बात बताते हैं कि हर रोज़ आधी रात को सरहद पर दो दिल कहीं से आकर मिलते हैं ....हर सुबह सरहद पर दिखते हैं उन्हें हरे काँच की चूड़ियों के टुकड़े ....गुलाबी ऊन की बिखरी कतरनें ...और मिलते-बिछड़ते कदमों के निशान .... ।सरहद के आर -पार के सिपाहियों ने उन कदमों के निशान से पता लगाया है .... ये पाँव शालमी गेट और कश्मीरी गेट से आते-जाते हैं .... पर सिपाहियों को मालूम है इन निशानों की हकीकत कि रूहों के पाँव नहीं होते .... उनके पास तो सिर्फ दिल होता है ... और दिलों को आपस में मिलने से कोई सरहद रोक नहीं सकती ..........
- Ruchi Bhalla
परिचय नाम : रुचि भल्ला
प्रकाशन : परीकथा एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ... समाचारपत्रों में कविताएं प्रकाशित... काव्य संग्रह : कविताएँ फेसबुक से , काव्यशाला , सारांश समय का , क्योंकि हम ज़िन्दा हैं , कविता अनवरत ,ब्लाॅग : पहलीबार हमरंग गाथांतर अटूट बंधन प्रसारण : आकाशवाणी के इलाहाबाद तथा पुणे केन्द्रों से कविताओं का प्रसारण ... काव्य-मंच ... संपर्क : C -9 803 पुरी प्राणायाम सेक्टर 82 फरीदाबाद हरियाणा मोबाइल नं 09560180202 ई. मेल ruchibhalla72@gmail.
शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016
सोनी पाण्डेय की कवितायेँ
1--------
तुम्हारे जाने के बाद .......
तुम्हारे जाने के बाद
जाना कि
कैसे रखता है धैर्य खोकर अपनी टहनियों से
सूख कर गिरे पत्तों को पतझड में दुवार का बरगद
जबकि सबसे अधिक जरुरत थी उसे उन दिनों
पत्तों की चादर की
शुष्क होते मौसम में ।
फटी बिवाईयों सूखी टहनियों का सिहरना
पपडियाये सूखे होंठ की दरारों से खून की लाली का झलकना
मैंने देखा है टभकते दर्द की अनुभूति में सिहरते
बरगद को
तुम्हारे जाने के बाद ।
तुम्हारे जाने के बाद भी निकलता है सूरज
गली के मुहाने से
बिखेरता है सिन्दुरी छुवन हथेलियों पर
सुलगा देता है ठण्डी पडी राख में दबी यादों की चिन्गारी से
जीवन के अलाव को
अब भुले से यादों की बस्ती में सावन नहीं आता
पतझड ने डाल लिया है डेरा
बरगद सिहरता है
सुलगता है
दहकता है
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने देखा है ।
2---------
रंग निरगुन सा रंगा सांची .......
रंग घोल लिया है टहटह लाल
विदाई की चादर रंगा लिया है रंगरेज
टांक दिया है चाँदनी का चँदावा चादर में
तारों की झालर लगा सजा रही हूँ
उस दिन जाऊँगी ओढ़ कर
रंग निरगुन सा रंगा सांची
जिस दिन आएगी डोली
तुम्हारे देस से ।
रंग रही हूँ रंगरेज
चमचम चमकते जुगनुओं के पंख सा श्वेत
चमकिला
सजा रही हूँ अमलतास के रंग में घोल कर
जोड़ा ,
पहले लपेट देना श्वेत रंग में रंगी चुनर में
फिर सजा देना ऊपर से जोड़ा ऊढा
जिस दिन रंगूँगी रंग निरगुन सा सांची ।
3-----
मौन गुनती हूँ आज भी ....
मौन गुनती हूँ आज भी
तुम्हारे आँखों की भाषा
जिसमें लिखी थी तुमने
राग गुलाबी
प्रेम अनुरागी
बजते थे तार - तार अमृत सा
सितार धुन
तुम्हारी आँखों में
मौन सुनती हूँ आज भी
जब उमड़ते हैं बादल मिलन के
सजती है धरती
चाँद थोड़ा और होता है मदहोश जब
मैं पढ़ लेती हूँ
सूखी पड़ी लहकती
दहकती धरती पर
तुम्हारे मौन आँखों की भाषा
ये प्रेम का सिन्दुरी विहान था
जानकर
संजोये रहती हूँ जीवन की उम्मीद
जरुरी है जीने के लिए
बचा रहना आँखों से आँखों का मौन मिलना
गुनना स्नेह अनुरागी ।
4-----------
माँ तुम्हारे गीत .........
माँ तुम्हारे गीत और जीवन
जैसे कलरव बादलों का
जैसे गुनगुन भौरों का
जैसे महकी हो अभी - अभी
खिली हुई रातरानी
कहा हो तितली से
सो जा नन्हीं परी ।
माँ तुम्हारे गीत और जीवन
जैसे अँखुवाऐ गेंहूँ की बालियों का कहना
ठहरो बस पकने को है भूख
जैसे सिहरते हुए जाडे में कहा हो अलाव ने
बैठो दम साध कर कि शेष है जीने भर
आग राख में
जैसे कहा हो चौखट ने मुंडेर से अभी -
अभी
रखा हैं पाँव दुलहीन ने
पडा है छाप आलते की लाली का
घर भरा है खुशियों से ।
माँ तुम्हारे गीत
जैसे नूर आसमानी
जैसे भरी झोली फकीर की
जैसे साँझ की लाली
जैसे रंग सतरंगी , रंगी हो भोर
जैसे आ बसी हो
देह में मधु की नरम मिसरी ।
माँ तुम्हारे गीत......
5----------
मैंने सुना है अपने शहर के अन्तरनाद को .......
जब साँझ ढलती है
रातरानी की मधुर देह सजती है
गाती है राग अमर जीवन का
रंग कर रंगरेज सुबह की चादर
फैला देता है आकाश के छत पर
मेरा शहर जागता है
करघे पर तान कर तकली भर धागा
बुनता है सूत - सूत जोड कर
अरमानों की म ऊवाली साड़ी
ये साड़ी थोडी सिली मिलेगी कबीर के लहरतारा में
मीरा के प्रेम गीतों में
घुँघरुओं की खन खन सी खनकती
करघे की लय में
मैंने सुना है अपने शहर के अन्तरनाद को ......
जब आती है साथ साथ
आवाज अजान और आरती की
उठती है लोहबान और अगरबत्ती की गन्ध
मन्दिर , मस्जिद और मज़ारों से
ये शहर हँसता है खिलखिलाकर
जब मिलते हैं गले
ईद और होली में
राम और रहमान
चाँदनी तान लेती है चँदावा नूर का
मैंने सुना है अपने शहर के अन्तरनाद को .....
6-----
किसी दिन आऊँगी मैं .....
मेरे जाने के बाद
तुम उदास हो
कि जैसे सूख कर गिर गयी हूँ
तुम्हारी साख से
देखना
मैं मिलूँगी
ओस की चिड़िया बन
मोती चुनते
तुम्हारी हथेलियों पर
जब चाँद थोड़ा अलसा कर
सर्द रातों में सिकुड़ कर बैठेगा
आकाश की गोद में
देखना
मैं मिलूँगी
तुम्हारे कानों में हरहराती
बासन्ती पवन संग गुनगुनाते
जब सूरज थोड़ा गरम होगा
मैं आऊँगी हर उस रात को
जब वन बेला महकेगी
मैं आऊँगी हर उस भोर में
जब हर सिंगार की गन्ध में नहाए तुम
आँखें मीचे मन की अतल गहराईयों में
मुझे निहार रहे होगे
देखना मैं आऊँगी.......
सोनी पाण्डेय
परिचय
नाम --सोनी पाण्डेय
शिक्षा ----एम.ए.हिन्दी साहित्य
शोध---निराला का कथा साहित्य :कथ्य और शिल्प
संप्रति -----ड्राप आउट लड़कियों को शिक्षण ।
लेखन
प्रकाशन ----काव्य संग्रह ----मन की खुलती गिरहें
गाथांतर हिन्दी त्रैमासिक का संपादन
कथादेश ,कथाक्रम ,आजकल ,कृतिओर ,संवेदन,यात्रा ,सृजनलोक ,समकालीन जनमत ,संप्रेषण आदि पत्रिकाओं तथा दैनिक हिन्दुस्ता और दैनिक भास्कर बिहार ,नयी दुनिया मध्य प्रदेश के साथ -साथ स्त्री काल ,अनुनाद,लाईव इण्डिया,पहली बार ,सिताब दियारा ,हमरंग आदि ब्लागों पर रचनाओं का प्रकाशन।
नेपाली भाषा में कुछ कविताओं का अनुवाद।
हिन्दी के अतिरिक्त भोजपुरी में कविता/कहानियों का लेखन एवं अनुवाद।
पता -----कृष्णा नगर
म ऊ रोड ,सिधारी ,
आज़मगढ़ ,उत्तर प्रदेश
पिन -276001
मोबाईल नम्बर---9415907958
ईमेल--pandeysoni.azh@gmail.com